षटतिला एकादशी का हिन्दू धरम में बहुत अधिक महत्तव माना जाता है। षटतिला एकादशी में तिल को दान करना बहुत ही लाभकारी साबित होता है। इस एकादशी में तिल को दान किया जाता है जिससे बहुत से फायदे मिलते है और जीवन की आने वाली मुश्किलें कम होती है। माना जाता है के षटतिला एकादशी पर तिलो का दान करने से हमारे बहुत से पापों का नाश होता है और इन्हे दान करने बहुत ही फलदायी माना जाता है। इस व्रत को करने से मानसिक, शारारिक पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है और अपने व्रत को पूरा किया जाता है है। आज हम आपको इस व्रत की विधि और महत्त्व के बारे में बताने जा रहे है।
षटतिला एकादशी का महत्व : षटतिला एकादशी के नाम के समान ही इस दिन तिल का खास महत्व होता है। अपनी दिनचर्या में इस दिन तिल के इस्तेमाल पर ध्यान दें, तिलों को दान करें इसका बेहद ही पुण्य मिलता है। षटतिला एकादशी के दिन तिल का 6 तरह से प्रयोग करने पर पापों का नाश हो जाता है और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। षटतिला एकादशी यानि तिलों के 6 प्रकार के प्रयोग से युक्त एकादशी। इस एकादशी के दिन तिलों का उपयोग 6 प्रकार से किया जाता है। तिलों के इस उपयोग को परम फलदायी माना गया है। आस्था है कि षटतिला एकादशी के व्रत से उपासक को वाचिक, मानसिक और शारीरिक पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन तिलों का उपयोग स्नान, उबटन, आहुति, तर्पण, दान और खाने में किया जाता है।
षटतिला एकादशी पूजा विधि : एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है लिहाजा इस दिन नहा धोकर सबसे पहले भगवान विष्णु की पूजा और ध्यान करें। अगले दिन द्वादशी पर सुबह सवेरे नहा धोकर भगवान विष्णु को भोग लगाएं और फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं -अगर ब्राह्मणोंं को भोजन कराने मे समर्थ न हो तो एक ब्राह्मण के घर सूखा सीधा भी दिया जा सकता है। सीधा देने के बाद खुद अन्न ग्रहण करें।
इस दिन जरूर करें ये काम : इस दिन तिल के जल से नहाएं। पिसे हुए तिल का उबटन लगाएं। तिलों का हवन करें तिल वाला पानी पीएं तिलों का दान दें। तिलों की मिठाई बनाएं।
व्रत कथा
भगवान विष्णु ने एक दिन नारद मुनि को षटतिला एकादशी व्रत की कथा सुनाई थी जिसके मुताबिक प्राचीन काल में धरती पर एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। जो मेरी बड़ी भक्त थी और पूरी श्रद्धा से मेरी पूजा करती थी। एक बार उस ब्राह्मणी ने एक महीने तक व्रत रखा और मेरी उपासना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया लेकिन वो ब्राह्मणी कभी अन्न दान नहीं करती थी, एक दिन भगवान विष्णु खुद उस ब्राह्मणी के पास भिक्षा मांगने पहुंचे। जब विष्णु देव ने भिक्षा मांगी तो उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर दे दिया। तब भगवान विष्णु ने बताया कि जब ब्राह्मणी देह त्याग कर मेरे लोक में आई तो उसे यहां एक खाली कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर ब्राह्मणी ने पूछा कि मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने के कारण हआ है। तब भगवान विष्णु ने बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं, तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब वो आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं। तब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का व्रत किया और उससे उसकी कुटिया धन धान्य से भर गई।