हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 22 जनवरी 2023

सोरठि महला १ घरु १ असटपदीआ चउतुकी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ दुबिधा न पड़उ हरि बिनु होरु न पूजउ मड़ै मसाणि न जाई ॥ त्रिसना राचि न पर घरि जावा त्रिसना नामि बुझाई ॥ घर भीतरि घरु गुरू दिखाइआ सहजि रते मन भाई ॥ तू आपे दाना आपे बीना तू देवहि मति साई ॥१॥ मनु.

सोरठि महला १ घरु १ असटपदीआ चउतुकी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ दुबिधा न पड़उ हरि बिनु होरु न पूजउ मड़ै मसाणि न जाई ॥ त्रिसना राचि न पर घरि जावा त्रिसना नामि बुझाई ॥ घर भीतरि घरु गुरू दिखाइआ सहजि रते मन भाई ॥ तू आपे दाना आपे बीना तू देवहि मति साई ॥१॥ मनु बैरागि रतउ बैरागी सबदि मनु बेधिआ मेरी माई ॥ अंतरि जोति निरंतरि बाणी साचे साहिब सिउ लिव लाई ॥ रहाउ ॥ असंख बैरागी कहहि बैराग सो बैरागी जि खसमै भावै ॥ हिरदै सबदि सदा भै रचिआ गुर की कार कमावै ॥ एको चेतै मनूआ न डोलै धावतु वरजि रहावै ॥ सहजे माता सदा रंगि राता साचे के गुण गावै ॥२॥

अर्थ :- मैं परमात्मा के बिना किसी ओर आसरे की खोज में नहीं पड़ता, मैं भगवान के बिना किसी ओर को नहीं पूजता, मैं कहीं समाध और शमशान में भी नहीं जाता । माया की त्रिशना में फँस के मैं (परमात्मा के दर के बिना) किसी ओर घर में नहीं जाता, मेरी मायिक त्रिशना परमात्मा के नाम ने मिटा दी है । गुरु ने मुझे मेरे हृदय में ही परमात्मा का निवास-स्थान दिखा दिया है, और अडोल अवस्था में रंगे हुए मेरे मन को वह सहिज-अवस्था अच्छी लग रही है। हे मेरे साईं ! (यह सब तेरी ही कृपा है) तूं आप ही (मेरे दिल की) जानने-वाला हैं; आप ही पहचानने वाला हैं, तूं आप ही मुझे (अच्छी) मति देता हैं (जिस करके तेरा दर छोड़ के ओर तरफ नहीं भटकता) ।1। हे मेरी माँ ! मेरा मन गुरु के शब्द में विझ गया है (पिरोया गया है । शब्द की बरकत के साथ मेरे अंदर परमात्मा से विछोड़े का अहिसास पैदा हो गया है) । वही मनुख (असल) त्यागी है जिस का मन परमात्मा के बिरहों-रंग में रंगा गया है । उस (बैरागी) के अंदर भगवान की जोति जग पड़ती है, वह एक-रस सिफ़त-सालाह की बाणी में (मस्त रहता है), सदा कायम रहने के लिए स्वामी-भगवान (के चरणों में) उस की सुरति जुड़ी रहती है ।1 ।रहाउ। अनेकों ही वैरागी वैराग की बाते करते हैं, पर असल वैराग वह है जो (परमात्मा के बिरहों-रंग में इतना रंगा हुआ है कि वह) खसम-भगवान को प्यारा लगता है, वह गुरु के शब्द के द्वारा अपने हृदय में (परमात्मा की याद को बसाता है और) सदा परमात्मा के डर-अदब में मस्त (रह के) गुरु की बताई हुई कार करता है । वह बैरागी सिर्फ परमात्मा को याद करता है (जिस करके उस का) मन (माया वाले तरफ) नहीं डोलता, वह बैरागी (माया की तरफ) दौड़ते मन को रोक के (प्रभू-चरणो में) जोड़ी रखता है । अडोल अवस्था में मस्त वह बैरागी सदा (भगवान के नाम-) रंग में रंगा रहता है, और सदा-थिर भगवान की सिफ़त-सालाह करता है ।2।

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