सूंग चिंगलिंग :  चीन और भारत के बीच दोस्ती निर्माण की बडी योगदानकर्ता

सूंग चिंगलिंग (27 जनवरी, 1893 – 29 मई, 1981) न केवल चीन लोक गणराज्य के संस्थापकों और मानद अध्यक्षों में से एक थीं और एक महान देशभक्त, लोकतांत्रिक, अंतर्राष्ट्रीयवादी और कम्युनिस्ट सेनानी थीं, बल्कि बीसवीं सदी में चीन की एक विश्व प्रसिद्ध महान महिला भी थीं। 27 जनवरी को सूंग चिंगलिंग का 130वां जन्मदिन है।.

सूंग चिंगलिंग (27 जनवरी, 1893 – 29 मई, 1981) न केवल चीन लोक गणराज्य के संस्थापकों और मानद अध्यक्षों में से एक थीं और एक महान देशभक्त, लोकतांत्रिक, अंतर्राष्ट्रीयवादी और कम्युनिस्ट सेनानी थीं, बल्कि बीसवीं सदी में चीन की एक विश्व प्रसिद्ध महान महिला भी थीं। 27 जनवरी को सूंग चिंगलिंग का 130वां जन्मदिन है।

लगभग सत्तर वर्षों के अपने क्रांतिकारी करियर में, सॉन्ग चिंगलिंग ने चीनी लोगों की मुक्ति, महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य, संस्कृति, शिक्षा और कल्याण की देखभाल करने, चीन के पुनर्मिलन को बढ़ावा देने, विश्व शांति की रक्षा करने और मानव प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करना जारी रखा। और बहुत बड़ा योगदान दिया। विदेशों में चीनियों और प्रवासी चीनियों द्वारा उनकी प्रशंसा और प्यार किया गया। उसी समय, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मित्रों की प्रशंसा और प्यार जीता और एक बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त की।

चीन और भारत के बीच आदान-प्रदान का इतिहास 2000 से अधिक साल पुराना है, जो सामग्रियों से सत्यापित योग्य है। आधुनिक काल से, औपनिवेशिक शासन-विरोधी शासन की प्रक्रिया में चीन और भारत के लोगों ने एक-दूसरे की मदद की और एक-दूसरे से सीखा। उन्होंने एकजुटता में हाथ मिलाकर अपने-अपने देशों की स्वतंत्रता और लोगों की मुक्ति के लिए प्रयास किया। इससे एशिया की जागृति और विकास को बढ़ाया गया। सूंग चिंगलिंग ने चीन-भारत मित्रता के लिए गहरा स्नेह समर्पित किया।

उसकी युवावस्था में उन्होंने अपने पति सुन यात-सेन का अनुसरण करते हुए क्रांतिकारी करियर में भाग लिया। महान राष्ट्रीय नायक, देशभक्त, चीन की लोकतांत्रिक क्रांति के अग्रदूत सुन यात-सेन चीन के क्रांतिकारी नेता तथा चीनी गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति एवं जन्मदाता थे। उस समय से जब सुन यात-सेन ने किंग राजवंश को उखाड़ फेंकने के लिये क्रांति में भाग लिया था, तो उन्होंने अवगत किया कि पश्चिमी देशों ने पूरे दुनिया में औपनिवेशिक शासन लगाया। उन्होंने चेतावनी दी कि “न केवल चीन, बल्कि सभी एशियाई देश पश्चिम के गुलाम बन जाएंगे।” वर्ष 1911 सन यात-सेन के प्रतिनिधित्व वाले चीनी क्रांतिकारियों ने सिन्हाई क्रांति की और किंग राजवंश को उखाड़ फेंका व चीन में हजारों साल की निरंकुश राजशाही को समाप्त कर दिया। सिन्हाई क्रांति की जीत ने भारतीय क्रांतिकारियों को बहुत प्रोत्साहन दिया। सुन यात-सेन को दुनिया में एक राष्ट्रीय नायक के रूप में माना जाता है। भारतीय क्रांतिकारियों ने उन्हें “पृथ्वी से उतरा भगवान” कहकर पुकारा।

सन यात-सेन के चीन और भारत के बीच संबंधों की रणनीतिक स्थिति का सूंग चिंग लिंग के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा। सुन यात-सेन के निधन के बाद, वर्ष 1927 में सुन यात-सेन की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए सूंग चिंग लिंग ने सोवियत संघ का दौरा किया। उस नवंबर में सोवियत संघ की दसवीं वर्षगांठ मनाने के लिये गतिविधियों में जवाहरलाल नेहरू और उनके पिता सूंग चिंग लिंग से पहली बार से मिले। इस बार की मुलाकात ने दोनों लोगों के बीच आजीवन दोस्ती की नींव रखी।

7 जुलाई 1937 को लुगो ब्रिज हादसा शुरू हुआ और चीन ने जापान के खिलाफ चौतरफा प्रतिरोध युद्ध का आरंभ किया। इस घटना के बाद भारतीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू चीन के समर्थन में बयान जारी किया। नेहरू के आह्वान पर पूरे भारत में बड़े पैमाने पर जापान विरोधी चीन की सहायता गतिविधि शुरू हुई। वर्ष 1938 में चीन की सहायता के लिए डॉ मदन मोहनलाल अटल (Madan Mohanlal Atal)के नेतृत्व में 5 भारतीय डॉक्टरों से गठित एक चिकित्सा दल चीन पहुंचा। जब भारतीय चिकित्सा दल चीन के क्वांगचो शहर में पहुंचा, तो सूंग चिंगलिंग और 2000 से अधिक लोगों ने ग्वांगचो घाट पर इस चिकित्सा दल का स्वागत किया। सूंग चिंगलिंग इस भारतीय चिकित्सा दल पर काफी ध्यान देती थी। उन्होंने नेहरू को बार-बार पत्र भेजे और भारतीय चिकित्सा दल को बेहतर तरीके से काम करने के लिए प्रोत्साहित करने पर चर्चा की।

जापानी आक्रामकता के खिलाफ युद्ध के दौरान सूंग चिंगलिंग ने एक लेख लिखा कि भारत और चीन को मिलाकर काम करना चाहिए। यह एशिया को मुक्त करने का एकमात्र तरीका है। जब भारतीय चिकित्सा दल के अंतिम डॉ विजय कुमार बसु भारत वापस लौटे, तो सूंग चिंगलिंग ने डॉ बसु के साथ मुलाकात की और उन्हें भारतीय लोगों के नाम एक पत्र सौंपा। इस पत्र में लिखा था कि भारतीय लोगों को सलाम, जिन्होंने अपनी आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, अपनी मातृभूमि की रक्षा की और फासीवादी आक्रमण के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जापानी आक्रामकता के खिलाफ युद्ध के दौरान सूंग चिंगलिंग ने चाइना डिफेंस लीग की स्थापना की और चीन में जापानी आक्रामकता के खिलाफ युद्ध को नैतिक, सार्वजनिक राय और भौतिक समर्थन देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का आह्वान किया। उन्होंने नेहरू और डॉ. मदन मोहनलाल अटल को इस लीग का संरक्षक बनने के लिए भी आमंत्रित किया।

चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना के बाद से सूंग चिंगलिंग और चीनी प्रधानमंत्री जोउ एनलाई और विदेश मंत्री छेन यी को चीन की कूटनीति का “लौह त्रिकोण” के नाम पर कहा जाता है। विशेष रूप से 1950 और 1960 के दशक में, सूंग चिंग लिंग ने चीनी राष्ट्रीय नेता के रूप में भारत, पाकिस्तान, बर्मा, इंडोनेशिया और श्रीलंका का दौरा किया और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का प्रचार किया। इससे चीन पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए राजनयिक नाकाबंदी को तोड़ दिया। सूंग चिंग लिंग की एशिया यात्रा ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और चीन की इच्छा का प्रतिनिधित्व किया। इसे चीनी लोक गणराज्य में सबसे शुरुआती “जनता की कूटनीति” के रूप में कहा जा सकता है।

नेहरू के आमंत्रण पर सूंग चिंगलिंय ने वर्ष 1955 16 दिसंबर से वर्ष 1956 2 जनवरी तक भारत की यात्रा की। हवाई अड्डे में उन्होंने भाषण दिया और चीन-भारत संबंध के महत्व की अपील की। उन्होंने कहा कि चीन और भारत के बीत एकता व सहयोग एशिया एवं दुनिया में शांति बनाए रखने और इसे मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभाता है। भारत की यात्रा में वे जहां भी गईं, स्थानीय सरकार, सामाजिक समूहों और भारतीय लोगों द्वारा उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया। 

भारत की यात्रा के उपलक्ष्य में सूंग चिंग लिंग ने “टेन थाउजेंड हैंड्स (हाथों की अरब जोड़ी)” नामक एक अंग्रेजी कविता विशेष रूप से लिखी। हिन्दी में यह है कि हमारे दोनों देश सरहदों से जुड़े हुए हैं, हमारे दोनों जनताएं दिल से दिल समानुभूति हैं, पानी की तरह समय उड़ने के साथ-साथ हमारे दोनों देश सद्भाव में रहते हैं और गहरा भाईचारा रखते हैं। भारत-चीन दोनों देश फल-फूल रहे हैं। पेइचिंग और नई दिल्ली न्यू एशिया के साथ बढ़ रहे हैं। शांति और दोस्ताना के लिये हमारी जरूरत है। हजारों हाथों से देखभाल की जरूरत है। हिंदी चीनी भाई भाई। हिंदी चीनी भाई भाई।

The Billion Pairs of Hands

Border to border are our two countries,

Heart to heart are our two peoples,

Through the ages amity and brotherhood. 

India-China the nations resurgent 

Peking, New Delhi the new Asia arising

Peace – friendship our billion pairs of hands

(for) your protectors

Hindi Chini Bhai Bhai

Hindi Chini Bhai Bhai

सूंग चिंगलिंग की भारत से दोस्ती दोनों देशों के लोगों के लिए एक अच्छी कहानी बनी है। जैसी कि वर्ष 1955 सूंग चिंगलिंग के लिये स्वागत सभा में नेहरू ने उन्हें “दूसरों को प्रकाश देने वाल एक प्रकाशस्तंभा” के नाम पर कहा। नेहरू ने कहा कि सूंग चिंगलिंग के साथ, लोग जीवन में कई महत्वपूर्ण चीजों में विश्वास प्राप्त कर सकते हैं और कभी-कभी एक व्यक्ति के लिये उसी विश्वास की सख्त जरूरत होती है। सूंग चिंगलिंग न केवल चीनी लोगों को, बल्कि भारत समेत अधिक देशों के लोगों को भी प्रकाश देती हैं। वे आश्चर्य करते हैं कि क्या सूंग चिंगलिंक को अन्य लोगों के लिए अपने उज्ज्वल चरित्र के कितना मायने रखना पता चलता है। 


(साभार – चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

- विज्ञापन -

Latest News