अमेरिका ने सोलोमन द्वीप में 30 वर्षों से बंद दूतावास फिर से खोला

हाल ही में, अमेरिका ने सोलोमन में स्थित अपने दूतावास को फिर से खोल दिया, जो 30 वर्षों से बंद था। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि वह प्रशांत क्षेत्र में और अधिक राजनयिक कर्मियों को भेजेगा और अमेरिकी परियोजनाओं और संसाधनों को स्थानीय जरूरतों से जोड़ेगा। अगर अमेरिका इस अवसर.

हाल ही में, अमेरिका ने सोलोमन में स्थित अपने दूतावास को फिर से खोल दिया, जो 30 वर्षों से बंद था। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि वह प्रशांत क्षेत्र में और अधिक राजनयिक कर्मियों को भेजेगा और अमेरिकी परियोजनाओं और संसाधनों को स्थानीय जरूरतों से जोड़ेगा। अगर अमेरिका इस अवसर पर ईमानदारी से प्रशांत द्वीप देशों की मदद करने और द्वीप देशों के विकास को बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय संयुक्त बल बनाने की कोशिश करेगा, तो निस्संदेह वह एक अच्छी बात होगी। लेकिन कई पश्चिमी मीडिया संस्थान ऐसा नहीं मानते हैं, वे मानते हैं कि यह “चीन के खिलाफ प्रतिस्पर्धा” करने और “एशिया-प्रशांत में अपनी तैनाती तेज करने” के लिए वाशिंगटन का ताज़ा कदम है।

1988 में, अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर सोलोमन द्वीप में दूतावास खोला, जिसका एक कारण है वह प्रशांत क्षेत्र में सोवियत संघ के प्रभाव से चिंतित था। सोवियत संघ के पतन के बाद, दूतावास ने 1993 में अपना मिशन समाप्त कर दिया और उसे बंद किया गया। तब से लगभग 30 वर्षों तक, दक्षिण प्रशांत क्षेत्र अमेरिका के भू-राजनीतिक मानचित्र पर अलोकप्रिय बना रहा।

2022 में स्थिति अचानक बदल गई है। पिछले साल अप्रैल में, चीन और सोलोमन द्वीप ने सुरक्षा सहयोग रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर किए, ताकि सोलोमन द्वीप में सामाजिक स्थिरता और दीर्घकालिक शांति को बढ़ावा दिया जा सके। हालांकि, दो संप्रभु देशों के बीच इस बहुत सामान्य सहयोग ने अमेरिकी कूटनीति की नसों को चुभो दिया है। और हमेशा से उपेक्षित प्रशांत द्वीप देशों ने एक बार फिर अमेरिका की दृष्टि के क्षेत्र में प्रवेश किया है।

एक ओर, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने हाथ मिलाकर चीन और सोलोमन द्वीप के बीच सुरक्षा सहयोग को बदनाम किया। दूसरी ओर, व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के इंडो-पैसिफिक मामलों के समन्वयक कैंपबेल को चीन-सोलोमन सहयोग को रोकने के लिए सोलोमन में जाने का आदेश दिया गया। साथ ही अमेरिका ने प्रशांत द्वीप देशों का दौरा करने के लिए कई वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा। और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में दो नए दूतावास खोलने की घोषणा की। वाशिंगटन ने पहले अमेरिका-प्रशांत द्वीप देश शिखर सम्मेलन की मेजबानी भी की। कुछ विश्लेषकों ने बताया कि 2022 में प्रशांत द्वीप देशों के प्रति अमेरिका द्वारा शुरू की गयी सिलसिलेवार कूटनीतिक गतिविधियों ने अमेरिका की दक्षिण प्रशांत देशों को लुभाने की तात्कालिकता और चिंता को प्रदर्शित किया।

खोलने से बंद करने तक और फिर पुनः खोलने तक, पिछले 30 वर्षों में, सोलोमन द्वीप में हमेशा अमेरिका की रणनीतिक चिंता और भू-राजनीतिक खेलों की चादर छाई रही। ईमानदारी देशों के बीच सहयोग की आधारशिला है। प्रशांत द्वीप देशों के लिए, विकास सर्वोच्च प्राथमिकता है और इसके लिए विदेशी सहायता की ईमानदारी की आवश्यकता है, न कि अवसरवादिता की। वे महाशक्तियों के खेल का मोहरा और शिकार बनने के इच्छुक नहीं हैं। आशा है कि अमेरिका द्वारा 30 वर्षों से बंद अपने दूतावासों को फिर से खोलने के बाद, वह प्रशांत द्वीप देशों के लिए सम्मान और समानता का पुनर्निर्माण करेगा। उदाहरण के लिए, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोलोमन द्वीप में छोड़े गए बमों को साफ करने से शुरुआत की जाय।

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

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