हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 9 फरवरी 2023

सलोकु मः १ ॥ जे मोहाका घरु मुहै घरु मुहि पितरी देइ ॥ अगै वसतु सिञाणीऐ पितरी चोर करेइ ॥ वढीअहि हथ दलाल के मुसफी एह करेइ ॥ नानक अगै सो मिलै जि खटे घाले देइ ॥१॥ मः १ ॥ जिउ जोरू सिरनावणी आवै वारो वार ॥ जूठे जूठा मुखि वसै नित नित होइ खुआरु.

सलोकु मः १ ॥ जे मोहाका घरु मुहै घरु मुहि पितरी देइ ॥ अगै वसतु सिञाणीऐ पितरी चोर करेइ ॥ वढीअहि हथ दलाल के मुसफी एह करेइ ॥ नानक अगै सो मिलै जि खटे घाले देइ ॥१॥ मः १ ॥ जिउ जोरू सिरनावणी आवै वारो वार ॥ जूठे जूठा मुखि वसै नित नित होइ खुआरु ॥ सूचे एहि न आखीअहि बहनि जि पिंडा धोइ ॥ सूचे सेई नानका जिन मनि वसिआ सोइ ॥२॥ पउड़ी ॥ तुरे पलाणे पउण वेग हर रंगी हरम सवारिआ ॥ कोठे मंडप माड़ीआ लाइ बैठे करि पासारिआ ॥ चीज करनि मनि भावदे हरि बुझनि नाही हारिआ ॥ करि फुरमाइसि खाइआ वेखि महलति मरणु विसारिआ ॥ जरु आई जोबनि हारिआ ॥१७॥

अर्थ: यदि कोई ठग पराए घर में ठगी करें, पपराए घर को ठग कर वह पदार्थ अपने पितरों के नाम से दें, तो (अगर सचमुच पितरों तक यह पदार्थ पहुंचता है तो) परलोक में वह पदार्थ पहचाना जाता है। इस तरह वह मनुष्य अपने पितरों को भी चोर बना देता है, क्योंकि उनके पास चोरी का माल निकल आता है। (फिर) प्रभु यह न्याय करता है कि यह चोरी का माल पहुंचाने वाले ब्राह्मण (दलाल) के हाथ काट दिए जाते हैं। हे नानक, किसी का पहुंचाया हुआ आगे क्या मिलना है? आगे तो मनुष्य को वही कुछ मिलता है जो कमाता है, और हाथों से दान करता है।।१।। जैसे स्त्री को हर महीने माहवारी आती है (और ये अपवित्रता सदा उसके अंदर से ही पैदा हो जाती है), वैसे ही झूठे मनुष्य के मुंह में सदा झूठ ही रहता है और इस लिए वह सदा दुखी ही रहता है। ऐसे मनुष्य पवित्र नहीं कहे जाते जो सिर्फ शरीर को ही धो के (अपनी ओर से पवित्र बन के) बैठ जाते हैं। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! केवल वही मनुष्य पवित्र हैं, सुच्चे हैं जिनके मन में प्रभू बसता है।2। जिनके पास काठियों (घोड़े की काठी) समेत (भाव, सदा तैयार बर तैयार) घोड़े, हवा जितनी तेज चाल वाले होते हैं, जो अपने हरमों को कई रंगों से सजाते हैं, जो मनुष्य इमारतें-महल-माढ़ियां आदि पसारे बना के (अहंकारी हुए) बैठे हैं, जो मनुष्य मन-मानियां, रंग-रलियां करते हैं, पर प्रभू को नहीं पहचानते, वे अपना मानस जन्म हार बैठते हैं। जो मनुष्य (गरीबों पे) हुकम करके (पदार्थ) खाते हैं (भाव, मौजें करते हैं) और अपने महलों को देख के अपनी मौत को भुला देते हैं, उन जवानी से ठॅगे हुओं को (भाव, जवानी के नशे में मस्त हुए मनुष्यों को) (गफलत में ही) (पता ही नहीं चलता कब) बुढ़ापा आ दबोचता है।17।

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