हाल में प्रशांत द्वीप देशों के लिए अमेरिका ने अपनी “चिंता” व्यक्त की, लेकिन उसने कोई यथार्थ कार्रवाई नहीं की। कुछ समय पहले 100 से अधिक सैन्य नियंत्रण, पर्यावरण संरक्षण और अन्य संगठनों ने अमेरिका सरकार को पत्र देकर कहा कि वह अपने वादे का पालन कर 1940 और 1950 के दशक में मार्शल द्वीप गणराज्य में किए बड़े पैमाने वाले परमाणु परीक्षण के लिए माफी मांगे और उचित मुआवज़ा दे। यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की न्यायपूर्ण अपील है, साथ ही अमेरिका के खिलाफ सामूहिक निंदा है।
मार्शल द्वीप गणराज्य मध्य प्रशांत सागर में स्थित है, जो 1200 से अधिक छोटे बड़े द्वीपों से बना है। 1944 में अमेरिका ने इस पर सैन्य कब्जा किया, 1947 में अमेरिका द्वारा प्रबंधित किया गया और 1986 में इसे स्वतंत्रता मिली। 1946 से 1958 के बीच अमेरिका ने मार्शल द्वीप गणराज्य में 67 बार परमाणु परीक्षण किए। खास तौर पर 1954 के पहली मार्च में अमेरिकी सेना ने यहां अभी तक सबसे बड़े विध्वंसक न्यूक्लियर हथियारों में से एक“कैसल ब्रावो”उदजन बम का विस्फोट किया। साथ ही अमेरिका ने अपने देश के नेवादा स्टेट के परमाणु परीक्षण स्थल की 130 टन से अधिक परमाणु दूषित मिट्टी को सीधे रूप से मार्शल द्वीप गणराज्य में डाला।
अंतर्राष्ट्रीय दबाव में 1986 में अमेरिका ने मार्शल द्वीप गणराज्य के साथ फ्री एसोसिएशन के समझौते(सीओएफए) पर हस्ताक्षर किये। अमेरिका ने करीब 15 करोड़ डॉलर का मुआवज़ा देने का वादा किया। हालांकि 1988 में स्थापित मध्यस्थता के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने सुनवाई की कि अमेरिका को मार्शल द्वीप गणराज्य को 2.3 अरब डॉलर का मुआवज़ा देना चाहिए। जबकि अमेरिका इससे इनकार किया।
लॉस एंजिल्स टाइम्स ने कहा कि अमेरिका ने केवल 40 लाख डॉलर दिए। जबकि अमेरिकी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर 2005 में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि अमेरिका और मार्शल द्वीप गणराज्य के बीच 1986 में हस्ताक्षरित समझौते में अतीत, आज और भविष्य की सभी मुआवज़े शामिल हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यह इस बात का द्योतक है कि अमेरिका मार्शल द्वीप गणराज्य के लिए और ज्यादा नहीं देना चाहता है।
अपराधों को हल्के ढंग से वर्णित किया और मुआवज़े के कार्यान्वयन को और बहुत कम किया। अमेरिका के अनैतिक अभ्यास ने वैश्विक सार्वजनिक क्रोध को जन्म दिया। 2022 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 51 वें सत्र ने एक प्रस्ताव पारित कर संबंधित देशों से इन जिम्मेदारियों को उठाने और परमाणु परीक्षणों की समस्या को हल करने के लिए मार्शल द्वीप गणराज्य की सहायता करने का आह्वान किया।
चूंकि सीओएफए 2023 तक प्रभावी होगा, सैंकड़ों संगठनों ने हाल में अमेरिका सरकार को पत्र भेजकर आशा जताई की कि अमेरिका इस अवसर पर नये समझौते में और उचित मुआवज़े की फीस को स्पष्ट करेगा।
2022 से अमेरिका प्रशांत द्वीप देशों पर ध्यान देने लगा। कई अमेरिकी राजनीतिज्ञों ने प्रशांत द्वीप देशों की यात्रा की। पहला अमेरिका-प्रशांत द्वीप देशों का शिखर सम्मेलन कुछ समय पहले वाशिंगटन में भी उद्घाटित हुआ। यदि अमेरिका सच्चे माइने में प्रशांत द्वीप देशों के विकास को मदद देना चाहता है, तो उसे पहले मुआवजे के लिए मार्शल द्वीप गणराज्य से माफी मांगनी होगी, फिर यथार्थ कार्रवाइयों से प्रशांत द्वीप देशों को मदद देनी चाहिए।
सबसे बड़े परमाणु हथियार संपन्न देश के रूप में, अमेरिका को न केवल मार्शल द्वीप गणराज्य को मुआवज़ा देना चाहिए, बल्कि वर्तमान खतरनाक परमाणु प्रसार कृत्यों को भी रोकना चाहिए। अमेरिका पुराने खाते को खत्म किए बिना नए ऋण न जोड़े!
(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)