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domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init
action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114ओस्लो : नार्वे में पुरातत्वविदों ने एक नई खोज की है। पुरातत्वविदों के मुताबिक उन्होंने दुनिया के सबसे पुराने रूनस्टोन को खोजा है। रुनस्टोन ऐसे पत्थर होते हैं, जिन पर प्राचीन समय के इंसानों ने रूनी वर्णमाला को कुरेदा हो। शोधकत्र्ताओं के मुताबिक यह शिलालेख 2 हजार साल पुराना है और रूनी लेखन के गूढ़ इतिहास के शुरूआती दिनों का है। ओस्लो में सांस्कृतिक इतिहास के संग्राहलय ने कहा कि भूरे रंग के बलुआ पत्थर के सपाट, चौकोर ब्लॉक में शिलालेखों को उकेरा गया है, जो स्कैंडिनेवियन शब्दों का पहला उदाहरण हो सकता है। म्यूजियम की ओर से कहा गया कि यह सबसे पुराने शिलालेखों में से एक है। यह दुनिया का सबसे पुराना डेटा योग्य रूनस्टोन है। ओस्लो यूनिवर्सिटी की प्रो. क्रिस्टेल जिल्मर के मुताबिक, यह खोज हमें प्रारंभिक लौह युग में रून्स के उपयोग के बारे में बहुत कुछ ज्ञान देता है।
2021 में हुई थी खोज
जिल्मर ने कहा कि चाकू या सुई की नोक का इस्तेमाल कर इन्हें उकेरा गया होगा। 2021 के अंत में नार्वे की राजधानी ओस्लो के पश्चिम में टायरिफजॉर्ड के पास एक कब्र की खुदाई के दौरान रूनस्टोन की खोज हुई थी। यहां पर मिली जली हुई हड्डियां, लकड़ी और कोयले की जांच के बाद माना गया कि ये पत्थर 1 ईसा पूर्व से 250 ईसा पूर्व के बीच का होगा। उन्होंने आगे कहा, हमें रूनस्टोन का विश्लेषण और इसकी तारीख का पता लगाने के लिए और भी समय की जरूरत होगी।
क्या लिखा है पत्थर पर
इस पत्थर की लंबाई 31 सै.मी. और चौड़ाई 32 सै.मी. है। इस पर कई तरह की आकृति बनी है, जिसके बारे में अभी नहीं समझा जा सका है। पत्थर के अगले हिस्से पर ‘इडिबेरुग’ लिखा है, जो एक महिला या पुरुष या किसी परिवार का नाम हो सकता है। जिल्मर ने इसे अपने कैरियर की सबसे सनसनीखेज चीज बताया है। उन्होंने आगे कहा कि यह तय बात है कि इस पत्थर से हमें कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी। रूनी वर्णमाला का इस्तेमाल प्राचीन उत्तरी यूरोप में किया जाता था