सब जानते हैं कि यह संसार चला-चली का मेला है, लेकिन आसक्ति है, अज्ञान है : संत मधु परमहंस

जम्मू: साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस महाराज ने आज संत आश्रम अखनूर में सत्संग के दौरान कहा कि मनुष्य केवल एक ही उपाय से बच सकता है और वो है सार नाम। नाम हृदय प्रकाशित करेगा। सब जानते हैं कि यह संसार चला-चली का मेला है, लेकिन आसक्ति है, अज्ञान है। ब्रह्मा जी ने वेद.

जम्मू: साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस महाराज ने आज संत आश्रम अखनूर में सत्संग के दौरान कहा कि मनुष्य केवल एक ही उपाय से बच सकता है और वो है सार नाम। नाम हृदय प्रकाशित करेगा। सब जानते हैं कि यह संसार चला-चली का मेला है, लेकिन आसक्ति है, अज्ञान है। ब्रह्मा जी ने वेद स्थापित किया, शिवजी ने योग। साहिब कह रहे है कि तीन लोक में, दसों दिशाओं में आत्मा का रास्ता रोका हुआ है। कुछ लोग निर्गुण भक्ति करते हैं। निर्गुण निरंजन का नाम है। संतों के विरोध का एक कारण था। कुछ लोग सगुण भक्ति करते है।

योगियों का गुरु कौन है। जो योग की बात कर रहे है, उनका गुरु कौन है। योगियों का गुरु शिवजी है। योगी कोई गुरु नहीं करते है लेकिन अपरोक्ष रूप से शिवजी को आदर्श मानते है गुरु मानते है। जो कह रहे है कि आत्मा ही सबकुछ है, उनका गुरु कौन है। हरेक मत, हरेक मार्ग का अनुचर एक ही बात बोलता है कि हमारा गुरु बड़ा है। साहिब भी कह रहे है कि गुरु बड़ा है। पर इन सब मतों- मतान्तरों की सृजन वेद से हुआ है। वेद के अलावा कुछ भी नहीं है। बस, संतों की बात वेदों से परे है। इसलिए संतों का विरोध है। आत्मा ही सब कुछ है, यह भेद वेदों ने ही दिया है।

इसलिए जो आत्मा ही सब कुछ है, मानते है, वो उनकी उपज नहीं है। यह वेद का संदेश है, वो वेदों को मानते है। इस तरह योगी का कोई गुरु नहीं होता है। सन्यासी का कोई गुरु नहीं होता है। वो सामवेद को मानता है। उस थ्यूरी को अपनाता है। सबसे पुराना वेद ऋगवेद है। वो निराकार परमात्मा बोल रहा है। अब कोई संसार में आकर कहे कि हम बता रहे है कि परमात्मा निराकार है तो यह झूठ है। वो वेदों का संदेश है। ऋगवेद बोल रहा है। इस तरह जो निराकार मान रहे है परमात्मा को, उनका आदि ऋ गवेद है। कबीर साहिब मां के पेट में नहीं आए।

इतने पंथ के अगुआ कहने लग गये कि हमारे गुरु ने शरीर छोड़ा तो अस्थी मांस नहीं मिला। यह नकल है। कोई प्रूफ नहीं है। साहिब एक बात कह रहे है कि कौन कह रहा है कि वेद झूठा है। वो झूठा है, जो वेद पर विचार नहीं करता है। हमारे देश में अलग-अलग तरह के लोग है, जो परमात्मा को अलगअलग मानते है। लोग बढ़ा-चढ़ा कर बात कह रहे है। जो कह रहे है आत्मा ही सबकुछ है, वो सामवेद का संदेश है। जो कह रहे है कि कर्म ही धर्म है, यह अथर्ववेद का संदेश है।

यह भी किसी की उपज नहीं है। इस तरह साहिब ने बड़ा प्यारा कहा कि चारों वेद मिलकर झगड़ा कर रहे है पर परमात्मा का रूप कोई नहीं जाना। संतों की धारा इन वेदों से ऊपर जा रही है। तभी संतों का विरोध हुआ है। क्योंकि चारों वेद अलग-अलग बात बोल रहे है। साहिब साफ साफ अपनी वाणी में कह रहे है कि जिस भेद में मैं रहता हूँ, वेद भी उसका रहस्य नहीं जानता है। चारों वेद भी सत्यपुरु ष की कहानियां नहीं जानते है। इसलिए जो आत्मा को ही परमात्मा मानने वाले है, वो गुरु को नहीं मानते है। यह उन्होंने कैसे मान लिया।

अगर आत्मा ही सबकुछ है तो बंधन में क्यों है। फिर बोलते है कि माया और मन में फंस गयी। फिर ये आत्मा से बड़े हो गये न। साहिब कह रहे है कि वेद निरकार तक ही जानते है। पर वेद को झूठा नहीं बोल सकते है। वो बोल रहा है कि आगे भी कुछ है। ब्रह्मा की उपासना यह है कि वेद रीति से जीवन जीना है। वे ही वेदों के अधिष्ठा है। साहिब साफ-साफ बोल रहे है कि जो रक्षा करने वाला है, उसे कोई नहीं जानता है।

जो मारने वाला है, सभी उसी में लगे है। अगर आत्मा ही सबकुछ है तो बंधी क्यों है। पाप और पुण्य दो कर्म है। साहिब ने कहा कि पाप और पुण्य दोनों बेढ़ियां है। कर्म में ही बंधा है। कर्म का आत्मा से कोई संबंध नहीं है। जो-जो भी कर्म कर रहा है, सीधा शरीर से संबंध है। लेकिन जिससे आदि का नाता है, उसे जीव भूल गया। बाकी जिन चीजों में उलझा है, सब माया है।

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