नयी दिल्ली: शुष्क मौसम के दौरान मंडियों में किसानों द्वारा तिलहन की आवक कम कर देने से देश के थोक तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को अधिकांश तेल तिलहन की कीमतों में सुधार का रुख रहा तथा सरसों, मूंगफली एवं सोयाबीन तेल- तिलहन तथा बिनौला तेल कीमतें मजबूत बंद हुई जबकि मलेशिया एक्सचेंज के आज बंद रहने के कारण कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल कीमतें पूर्वस्तर पर बनी रहीं।बाजार सूत्रों ने कहा कि उत्पादक राज्यों में शुष्क मौसम के बीच सोयाबीन की उत्पादकता प्रभावित होने की आशंका के कारण किसान मंडियों में सोयाबीन कम ला रहे हैं और उनकी पूरी नजर आगे बरसात पर टिकी हुई है। आवक की इस कमी की वजह से तेल तिलहन कीमतों में मजबूती का रुख कायम हो गया और अधिकांश तेल तिलहन कीमतें मजबूत हो गयीं। वैसे सरसों और सूरजमुखी अपने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी नीचे बिक रहा है। मौसम विभाग का अनुमान है कि सितंबर के महीने में बरसात बढ़ेगी।
सूत्रों ने कहा कि मौजूदा स्थिति में, जिस सूरजमुखी तेल का दाम आज से लगभग 15 माह पूर्व 200 रुपये लीटर (यानी 2,500 डॉलर प्रति टन) था वह कीमत घटकर 80 रुपये लीटर (लगभग 1,000 डॉलर प्रति टन) रह गई है और बंदरगाहों पर इसी सूरजमुखी तेल की बिक्री 76 रुपये लीटर के भाव हो रही है। यानी जो देश अपनी जरुरतों के लिए लगभग डेढ़ करोड़ टन खाद्यतेलों के आयात पर निर्भर करता है वहां आयात लागत से 3-5 प्रतिशत कम दाम पर खाद्यतेल बिके, यह बिल्कुल उल्टी कहानी है।सूत्रों ने कहा कि दूसरी ओर, मलेशिया और इंडोनेशिया में पूरे साल भर में लगभग आठ करोड़ टन पामतेल का उत्पादन होता है और अपने तेल का दाम एक डॉलर कम करने में भी वे आनाकानी करते हैं। ये पूरी परिघटना दो अलग अलग कहानी कहती हैं।
सूत्रों ने कहा कि अगर सस्ते आयात की बाढ़ के बाद देशी तेल तिलहन बेपड़ता हो जायें और बाजार में प्रतिस्पर्धी ना रह जायें, जब देशी तेल पेराई मिलों का कामकाज ठप हो जाये, मंहगा बैठने के कारण देश के तेल उद्योग और किसान की हालत खराब हो, बैंकों का कर्ज डूबने का खतरा हो जाये और इन सब बातों से उपर, अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) जरुरत से कहीं अधिक निर्धारित किये जाने की वजह से उपभोक्ताओं को यही तेल सस्ता भी ना मिले तो इन सब हालात के लिए जिम्मेदारी कौन उठायेगा? सूत्रों ने कहा कि तेल संगठनों को समय रहते इन सब बातों को लेकर सरकार को आगाह करना चाहिये था।उन्होंने कहा कि अगले एक सप्ताह में खाद्यतेलों की मांग और बढ़ेगी। सोयाबीन की आवक कमजोर है, बिनौला और मूंगफली की भारी कमी है और अक्ट्रबर में नयी फसल के बाद ही स्थिति संभलेगी, फिलहाल बिनौला और मूंगफली की कमी को केवल सूरजमुखी तेल के आयात से ही संभाला जा सकता है।
आयातित तेल में घाटे का कारोबार कब तक चलेगा और इन परिस्थितियों में सॉफ्ट आयल का आयात प्रभावित होने की आशंका पैदा हो गयी है। त्यौहारी मौसम नजदीक है, ऐसे में फिर देश में खाद्यतेलों की आपूíत की क्या स्थिति रहेगी यानी जुलाई-अगस्त में विदेशों से आयात का क्या विवरण है, इसे तो तेल संगठनों को सरकार के सामने स्पष्ट रूप से लाना चाहिये ताकि त्यौहारों के समय आपूíत की स्थिति ठीक रहे। तेल संगठनों को यह जिम्मेदारी निभानी चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि महाराष्ट्र के लातूर में सोयाबीन की कम आवक के बीच सोयाबीन का दाम 5,200 रुपये से बढ़ाकर 5,300 रुपये क्विन्टल कर दिया गया है। ऐसा इसलिए कि किसानों की नजर आगे की बरसात पर है और वे अभी अपना माल निकाल नहीं रहे हैं।सूत्रों ने कहा कि तेल संगठनों को इस स्थिति पर भी नजर रखनी होगी कि कौन लोग देश में बेपड़ता कारोबार कर रहे हैं और इस समस्या के बारे में सरकार को अवगत कराना चाहिये।
शनिवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन – 5,650-5,700 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल ।
मूंगफली – 7,815-7,865 रुपये प्रति क्विंटल ।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 18,600 रुपये प्रति क्विंटल ।
मूंगफली रिफाइंड तेल 2,725-3,010 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 10,675 रुपये प्रतिक्विंटल ।
सरसों पक्की घानी- 1,780 -1,875 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 1,780 -1,890 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रतिक्विंटल ।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,160 रुपये प्रतिक्विंटल ।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,075 रुपये प्रतिक्विंटल ।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,350 रुपये प्रतिक्विंटल ।
सीपीओ एक्स-कांडला- 8,210 रुपये प्रतिक्विंटल ।।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,100 रुपये प्रतिक्विंटल ।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,385 रुपये प्रतिक्विंटल ।
पामोलिन एक्स- कांडला- 8,550 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रतिक्विंटल ।
सोयाबीन दाना – 5,205-5,300 रुपये प्रतिक्विंटल ।
सोयाबीन लूज- 4,970-5,065 रुपये प्रतिक्विंटल ।
मक्का खल (सरिस्का)- 4,015 रुपये प्रतिक्विंटल ।