खेलों में China के ‘सुपर पावर’ बनने की कहानी!

इन दिनों चीन के हांगचो शहर में एशियन गेम्स चल रहे हैं, और सभी एशियाई देश मेडल जीतने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। 23 सितंबर को शुरू हुए ये एशियन गेम्स 8 अक्तूबर तक चलेंगे। दरअसल, ये गेम्स 2022 में ही होने थे, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे टाल दिया गया.

इन दिनों चीन के हांगचो शहर में एशियन गेम्स चल रहे हैं, और सभी एशियाई देश मेडल जीतने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। 23 सितंबर को शुरू हुए ये एशियन गेम्स 8 अक्तूबर तक चलेंगे। दरअसल, ये गेम्स 2022 में ही होने थे, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे टाल दिया गया था।

आपको बता दें कि हांगचो चीन का तीसरा शहर है, जहाँ एशियन गेम्स आयोजित किए जा रहे हैं। इससे पहले चीन की राजधानी बीजिंग में 1990 में और क्वांगचो में 2010 में एशियन गेम्स हुए थे।

वहीं, भारत की बात की जाए तो साल 1951 से शुरू हुए एशियन गेम्स में भारत की अहम भूमिका रही है। पहला एशियन गेम्स नई दिल्ली में ही आयोजित हुए थे, और भारत हर एशियन गेम्स में हिस्सा ले चुका है।

उधर, चीन ने पहली बार साल 1974 में एशियन गेम्स में भाग लिया और साल 1982 के बाद से हर एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल की संख्या में सबसे आगे रहा। इस बार भी हांगचो एशियन गेम्स में में चीन पदक तालिका में टॉप पर बना हुआ है। चीन पहले दिन से ही गोल्ड मेडल जीतने के साथ ही नंबर वन स्थान पर काबिज है। चाहे ओलंपिक खेल हो या फिर एशियन गेम्स, उसका प्रदर्शन हमेशा सुपर पावर की तरह ही रहा है। 

यह सच है कि चीन ने खेलों में ऐसा दबदबा कायम कर लिया है कि वह खेलों की दुनिया में सुपरपावरबन गया है। लेकिन इसका कारण क्या है? दरअसल, चीन के लिए खेलों का महत्व किसी युद्ध से कम नहीं है। उसकी सफलता के पीछे एक खास मिशन है, जिसके तहत वह लगातार आगे बढ़ता गया और अपनी पदक तालिका को मजबूत बनाता गया।

साल 1980 के ओलंपिक खेलों के बाद से चीन की खेल प्रणाली काफी हद तक मजबूत हुई, और ओलंपिक और एशियन गेम्स में बहुत अधिक गोल्ड मेडल हासिल करने के बारे में चीन सरकार ने सोचना शुरू किया, और बहुत जल्दी सफलता हासिल करने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी की। चीनी खिलाड़ियों की ट्रेनिंग वैज्ञानिक और मेडिकल साइंस के आधार पर ज्यादा जोर देकर करवाई जाती है, जिससे वो मेडल जीतने में कामयाब होते हैं।

इतना ही नहीं, चीन खेल अकादमियों, टैलेंट स्काउट्स, मनोवैज्ञानिकों, विदेशी कोचों, और नई टेक्नोलॉजी और साइंस पर लाखों डॉलर खर्च करता है। चीन उन खेलों पर ख़ास जोर देता है जिनमें बहुत अधिक इवेंट्स होते हैं और बहुत सारे मेडल जीतने की संभावना होती हैं, जैसे शूटिंग, जिमनास्टिक, तैराकी, नौकायन, ट्रैक एंड फील्ड आदि।

इसके लिए, चीन के स्कूलों में बच्चे 6 साल की उम्र से ही जिमनास्टिक्स, खेलकूद आदि की ट्रेनिंग लेना शुरू कर देते हैं। ज्यादातर चीनी माता-पिता अपने बच्चों को स्पोर्ट्स स्कूल में भेजते हैं, जहां उन्हें सख्त ट्रेनिंग दी जाती है और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए तैयार किया जाता। एक बात यह भी है कि चीनी माता-पिता को अपने बच्चों के लिए खेल एक सुनहरा करियर ऑपशन लगता है।

चीन के 96 प्रतिशत राष्ट्रीय चैंपियन सहित लगभग 3 लाख एथलीटों को चीन के 150 विशेष स्पोर्ट्स कैंप में ट्रेनिंग दी जाती है, जैसे वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन, चच्यांग फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स स्कूल और अन्य हज़ारों छोटे-बड़े ट्रेनिंग केंद्र। दक्षिण चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी खुनमिंग में हाईकंग स्पोर्ट्स ट्रेनिंग सेंटर चीन का सबसे बड़ा खेल ट्रेनिंग सेंटर है। इसमें बास्केटबॉल, वॉलीबॉल, जूडो, तलवारबाजी, मार्शल आर्ट और अन्य खेलों की सुविधाएं हैं, जो सभी इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के अनुरूप हैं।

इन सबके बीच, चीन में 3,000 से अधिक स्पोर्ट्स स्कूल हैं जो प्रतिभा की पहचान करने और उसका पोषण करने के लिए जिम्मेदार हैं। ये स्कूल खेलों में क्षमता दिखाने वाले छात्रों को विशेष ट्रेनिंग देते हैं।

इन स्पोर्ट्स स्कूल में कम उम्र के बच्चे बेहद कड़ी ट्रेनिंग से गुजरते हैं। इस तकलीफ को सहकर ही वे चैंपियन बनने की कला सीखते हैं। तभी तो ओलिंपिक हो या एशियन गेम्स, हर इवेंट्स में ‘गोल्ड’ जीतने के लिए चीनी खिलाड़ी ऐड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं। भले ही चीनी एथलेटिक्स अन्य देशों से आगे हों, लेकिन इस मुकाम को हासिल करने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इसी कारण लगभग हर खेलों में चीनी खिलाड़ियों की धूम रहती है।

यकीनन, अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में चीनी एथलीटों की सफलता का श्रेय देश की खेल प्रणाली, सरकारी नीतियों, सांस्कृतिक फैक्टर्स, सॉफ्ट पावर, निजी निवेश, ट्रेनिंग और कोचिंग सहित फैक्टर्स के मिले-जुले स्वरूप को जा सकता है। इन फैक्टर्स ने प्रतिभाशाली एथलीटों का एक समूह तैयार करने में मदद की है जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलता हासिल की है।

(लेखक: अखिल पाराशर, बीजिंग में चाइना मीडिया ग्रुप में पत्रकार हैं)

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