पटना : जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर अतिपिछड़ों को जूते की नोक पर रखने का आरोप लगाया और चेतावनी देते हुए कहा कि भाजपा आने वाले चुनावों में अतिपिछड़ा समाज का आक्रोश ङोलने के लिए तैयार रहे। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव रंजन ने बुधवार को भाजपा को चेतावनी देते हुए कहा कि जिन अतिपिछड़ों को भाजपा के नेता हमेशा जूते की नोक पर रखने की कोशिश करते रहे थे, आज जातिगत गणना में उनके बहुसंख्यक होने से उन नेताओं के चेहरों पर अब हवाइयां उड़ने लगी हैं। एक ही दिन में इनकी जुबान और रंगत सब बदल गये हैं। जिस जातिगत गणना को रोकने के लिए भाजपा ने एड़ी चोटी का जोड़ लगा दिया था आज इनके नेता छाती पीट-पीट कर उसके समर्थक होने की नौटंकी करने लगे हैं।
रंजन ने कहा कि भाजपा यह जान ले कि अतिपिछड़ा समाज भले ही गरीब हो लेकिन अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं करता। अतिपिछड़े समाज का बच्चा-बच्चा भाजपा की अतिपिछड़ा विरोधी मानसिकता को जान चुका है। उन्होंने कहा कि उन्हें पता है कि भाजपा के नेताओं की निगाह में अतिपिछड़ा समाज के नेताओं का वजूद गुलामों से अधिक नहीं है। जदयू महासचिव ने कहा कि अतिपिछड़े समाज की भारी संख्या देख कर भाजपा के नेता अब इस समाज पर डोरे डालने की रणनीतियों में जुट चुके हैं। वह समझ चुके हैं कि सत्ता का रास्ता अतिपिछड़ों के दरवाजों से ही होकर जाता है इसीलिए निश्चय ही आने वाले समय में यह अतिपिछड़े समाज को महत्व देने का दिखावा करेंगे। लेकिन, भाजपा यह जान ले कि काठ की हांडी बार-बार चूल्हे पर नहीं चढ़ती। अतिपिछड़ा समाज भाजपा की घृणा को भूलने वाला नहीं है। आने वाले चुनाव में उन्हें अतिपिछड़ा समाज के आक्रोश से कोई नहीं बचा सकता।
रंजन ने कहा कि अतिपिछड़ा समाज यह भूला नहीं है कि उनसे घृणा करने की ही वजह से, इतने वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा ने अतिपिछड़े समाज के नेताओं को कभी कोई महत्वपूर्ण मंत्रलय नहीं दिया और जिन्हें दिखावे के लिए मंत्रिपद दिया भी गया, उन्हें ढंग से काम नहीं करने दिया गया। दरअसल भाजपा का एकमात्र उद्देश्य अतिपिछड़े नेताओं को वोट बैंक तक सीमित रखना है। अतिपिछड़े समाज की बड़ी संख्या को देखते यह लोग उन्हें अपने साथ रखना तो चाहते है लेकिन उन्हें वाजिब सम्मान देना उन्हें पसंद नहीं है। भाजपा यह जान ले कि अतिपिछड़ा समाज को बरगला कर उनका वोट खींचने का भाजपा का षड्यंत्र हम कभी कामयाब नहीं होने देंगे।