नयी दिल्ली: गुजरात में मूंगफली की आवक बढऩे के बीच देश के तेल-तिलहन बाजारों में बुधवार को मूंगफली तेल-तिलहन के थोक दाम धराशायी होते नजर आए, जबकि बाकी सभी तेल-तिलहनों की थोक कीमतें पूर्वस्तर पर बनी रहीं। धन की कमी की वजह से सुस्त कारोबार रहने के कारण सरसों, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल के थोक दाम पूर्वस्तर पर बने रहे। बाजार सूत्रों ने कहा कि गुजरात में विशेषकर सौराष्ट्र क्षेत्र में मूंगफली फसल की आवक बढक़र लगभग तीन लाख बोरी हो गई, जिससे मूंगफली तेल-तिलहन के थोक दाम धराशायी हो गये। पिछले कई महीनों से बेपड़ता आयात जारी रहने के बीच अब आयातकों, खाद्य तेल पेराई मिलों जैसे अंशधारकों की वित्तीय स्थिति डांवाडोल हुई है और धीरे-धीरे उनकी कारोबारी गतिविधियां कम हो रही हैं।
जिस वजह से सरसों, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल के थोक दाम पूर्वस्तर पर बने रहे। किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि आयातित तेलों के थोक दाम घटकर लगभग आधे रह जायेंगे। दूसरी ओर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) ऊंचा रखे जाने की वजह से उपभोक्ताओं को खाद्य तेल महंगा मिल रहा है।सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों की वजह से एक तो देशी तेल-तिलहन बाजार में खप नहीं रहे, दूसरी तरफ पिछले साल अपनी फसल के लिए ऊंचा दाम पाने वाले किसान अब सस्ते में अपनी उपज बेचने को राजी नहीं दिख रहे। स्थिति यह बन गई है कि जो भी किसान मजबूरीवश बिकवाली कर रहे हैं, उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम कीमत पर अपनी उपज को बेचना पड़ रहा है। किसानों को पिछले साल सोयाबीन फसल के दाम 6,500-7,000 रुपये क्विंटल के लगभग मिले थे जबकि इस बार मंडियों में इसके दाम 4,200 रुपये क्विंटल लगाये जा रहे हैं जबकि इसका एमएसपी 4,600 रुपये क्विंटल है।
उन्होंने कहा कि सरसों का एमएसपी 5,450 रुपये क्विंटल है जबकि सहकारी संस्था नेफेड ने बहादुरगढ़ और एलनाबाद की मंडियों में हाल में 5,311-5,315 रुपये क्विंटल के भाव अपने स्टॉक के सरसों बेचे हैं। सरसों बिजाई के दिनों को देखते हुए एमएसपी से कम दाम पर सरसों बिकवाली, सरसों किसानों को हतोत्साहित कर सकता है। जिस तरह अधिक एमएसपी के बावजूद, पूर्व में अनिश्चित बाजार स्थिति की चोट खाये किसान, सूरजमुखी की पैदावार नहीं बढ़ा रहे कहीं ऐसा ही हाल बाकी तिलहनों का न हो जाये।सूत्रों ने कहा कि सरकार को तेल आयात की स्थिति की समीक्षा करनी चाहिये और आयातकों द्वारा लिए गये बैंक कर्ज की स्थिति पर नजर रखनी चाहिये।