रामपुर बुशहर (मीनाक्षी) : हिमाचल प्रदेश में भांग की खेती पर प्रतिबंध के चलते सदियों पुराना पूला (भांग के रेशों से बनाए जाने वाले कलात्मक जूते) व्यवसाय अब दम तोड़ने लगा है। कुल्लू और मंडी जिलों में सर्दियों के मौसम में हजारों परिवार अलाव के पास बैठकर पूले बनाया करते थे। इस व्यवसाय में बच्चे, महिलाएं व बूढ़े बराबर की भागीदारी निभाया करते थे और मेले या अन्य धार्मिक उत्सवों पर पुरुष इन कलात्मक जूतों को बेचा करते थे। यह व्यवसाय लोगों की मुख्यआय का साधन भी था लेकिन भांग पर सरकारी प्रतिबंध के चलते पूले के लिए भांग का रेशा उपलब्ध नही होने से इस व्यवसाय पर संकट के बादल मंडराने लगे है। अंतरराष्ट्रीय लवी मेले के अवसर पर किसी समय पूला बेचने वालो का पूरा बाजार सजा करता था, लेकिन अब एक आध व्यापारी ही मेले में दिखता है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन यह कला विलुप्त हो जाएगी और हजारों परिवारों को रोजी रोटी के संकट का सामना करना पड़ सकता है।
पूले का उपयोग मंदिरों और अन्य धार्मिक उत्सवों पर किया जाता है, क्योंकि इसे शुद्ध माना जाता है और इसे पैरों में पहन कर धार्मिक अनुष्ठान भी किए जा सकते हैं। भांग के गलत उपयोग के चलते सरकार ने भांग की खेती पर प्रतिबंध लगा रखा है। लोग मांग करने लगे हैं कि भांग की खेती से प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए, ताकि सदियों पुराना पूला व्यवसाय जिंदा रह सके। मंडी के पूला उद्योग से जुड़े लोत्तम राम का कहना है कि भांग का रेशा मिलना मुश्किल हो गया है इसलिए बहुत कम लोग इस काम को कर रहे हैं।
वहीं लवी मेलें मे आए कुल्लु के पूला व्यवसाय से जुड़े व्यवसायी टेक सिंह राणा कहते हैं कि वे पिछले करीब 1972 से लेकर लवी मेले में पूला बेचने आ रहे हैं। किसी समय में पूले का पूरा बाजार ही सजता था, लेकिन अब केवल वही एकमात्र व्यक्ति हैं जो मेले में पूला लेकर आते हैं। उनका कहना है कि पूले की मांग तो है लेकिन भांग का रेशा न मिलने से कठिनाई पेश आ रही है। इसलिए प्राकृतिक रेशे के साथ अन्य धागों की मिलावट करनी पड़ रही है। उनका कहना है कि सरकार को भांग की खेती से प्रतिबंध हटाना चाहिए, ताकि हजारों परिवारों को रोजगार मिल सके।