विज्ञापन

हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 02 जून 2024

धनासरी महला ५ ॥ जतन करै मानुख डहकावै ओहु अंतरजामी जानै ॥ पाप करे करि मूकरि पावै भेख करै निरबानै ॥१॥ जानत दूरि तुमहि प्रभ नेरि ॥ उत ताकै उत ते उत पेखै आवै लोभी फेरि ॥ रहाउ ॥

- विज्ञापन -

धर्म : धनासरी महला ५ ॥ जतन करै मानुख डहकावै ओहु अंतरजामी जानै ॥ पाप करे करि मूकरि पावै भेख करै निरबानै ॥१॥ जानत दूरि तुमहि प्रभ नेरि ॥ उत ताकै उत ते उत पेखै आवै लोभी फेरि ॥ रहाउ ॥ जब लगु तुटै नाही मन भरमा तब लगु मुकतु न कोई ॥ कहु नानक दइआल सुआमी संतु भगतु जनु सोई ॥२॥५॥३६॥

अर्थ: हे प्रभू! तू (सब जीवों के) नजदीक बसता है, पर (लालची पाखण्डी मनुष्य) तुझे दूर (बसता) समझता है। लालची मनुष्य (लालच के) चक्कर में फसा रहता है, (माया की खातिर) उधर देखता है, उधर से और उधर ताकता है (उसका मन टिकता नहीं)। रहाउ।हे भाई! (लालची मनुष्य) अनेकों यतन करता है, लोगों को धोखा देता है, विरक्तों वाले धार्मिक पहरावे पहने रखता है, पाप करके (फिर उन पापों से) मुकर भी जाता है, पर सबके दिल की जानने वाला वह परमात्मा (सब कुछ) जानता है।1।हे भाई! जब तक मनुष्य के मन की (माया वाली) भटकना दूर नहीं होती, इस (लालच के पँजे से) आजाद नहीं हो सकता।गुरु नानक जी कहते हैं, हे नानक! कह– (पहरावों से भगत नहीं बन जाते) जिस मनुष्य पर मालिक-प्रभू खुद दयावान होता है (और, उसको नाम की दाति देता है) वही मनुष्य संत है भगत है।2।5।36।

- विज्ञापन -
Image

Latest News