धर्म: सलोकु मः ३ ॥ भगत जना कंउ आपि तुठा मेरा पिआरा आपे लइअनु जन लाइ ॥ पातिसाही भगत जना कउ दितीअनु सिरि छतु सचा हरि बणाइ ॥ सदा सुखीए निरमले सतिगुर की कार कमाइ ॥ राजे ओइ न आखीअहि भिड़ि मरहि फिरि जूनी पाहि ॥ नानक विणु नावै नकीं वढीं फिरहि सोभा मूलि न पाहि ॥१॥
अर्थ: प्यारा प्रभु अपने भगतों पर आप प्रसन्न होता है और आप ही उसने उनको अपने से जोड़ लिया है। भक्तों के सिर पर सच्चा छत्र झुला कर भक्तों को पातशाही बख्शी है। सतगुरु की बताई कार कमा कर वह सदा सुखी और पवित्र रहते हैं। राजे उनको नहीं कहते जो आपस में लड़ मरते हैं और फिर योनियों में पड़ जाते हैं। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! नाम से दूर, राजे भी, नाक-कटवाए फिरते हैं और सोभा नहीं पाते॥१॥