देसी घी पर रखी गई इस ऐतिहासिक मंदिर की नींव…जानिए इस रहस्य से जुड़े वो राज, जिनसे वैज्ञानिक भी आज तक हैं अनजान

बीकानेर : राजस्थान की त्यागमयी धरा पर चप्पे- चप्पे पर कई पौराणिक मंदिर व ऐतिहासिक इमारतें व दुर्ग के अलावा हवेलियां देखने को मिल जाएंगी, जिनका सामरिक महत्व आज भी है। पश्चिमी राजस्थान के कई शहर रेत के टीलों में बसे हुए हैं। एक ऐसा ही ऐतिहासिक शहर बीकानेर भी है जो अपने समय की.

बीकानेर : राजस्थान की त्यागमयी धरा पर चप्पे- चप्पे पर कई पौराणिक मंदिर व ऐतिहासिक इमारतें व दुर्ग के अलावा हवेलियां देखने को मिल जाएंगी, जिनका सामरिक महत्व आज भी है। पश्चिमी राजस्थान के कई शहर रेत के टीलों में बसे हुए हैं। एक ऐसा ही ऐतिहासिक शहर बीकानेर भी है जो अपने समय की समृद्ध रियासत के नाम से प्रसिद्ध है। बीकानेर शहर को बसाने वाले संस्थापक राव बीकाजी से लेकर राव करणी सिंह तक, एक ही वंश के 23 राजाओं ने बीकानेर पर राज किया। बीकानेर शहर को जितना ऐतिहासिक दृष्टि से जाना जाता है, उतना ही यहां की बुलंद इमारतों के लिए भी। बीकानेर के लालगढ़ व जूनागढ़ के किले गजनेर पैलेस तथा राजपरिवाराें की स्मृति स्वरूप छतरियां, हवेलियां संग्रहालय व यहां के नायब कला के उत्कृष्ट नमूनों के रूप में कई दर्शनीय मंदिर भी हैं, जिन्हें देखने के लिए वर्ष भर पर्यटक देश-विदेश से यहां आते हैं।

बीकानेर के पुराने बाजार के अंतिम छोर पर निर्मित भांडाशाह का जैन मंदिर अत्यन्त ही रोचक व अलग शैली का मंदिर है जो त्रिलोक दीपक प्रसाद मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह मंदिर बीकानेर के प्रसिद्ध देशी घी के व्यापारी भांडाशाह ने संवत् 1571 में बनवाया था लेकिन इस मंदिर की आश्चर्यचकित कर देने वाली विशेषता यह है कि मंदिर निर्माण से पूर्व इसकी नींवें चालीस हजार सेर देसी घी से भरी गई थीं। मंदिर में लगे शिलालेखानुसार बीकानेर के निवासी व घी के व्यापारी भांडाशाह घी के लिए तो प्रसिद्ध थे ही, साथ ही कंजूसी के लिए भी जगप्रसिद्ध थे। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को भांडाशाह ने एक साधु के कहने पर बनवाया था जो राजा राव लूणकरण के शासनकाल में बन कर तैयार हुआ था। जनश्रुति अनुसार मंदिर के निर्माण के लिए वास्तुकार बातचीत करने के लिए भांडाशाह के घर आया, तब बातचीत के वक्त पास में रखे घी की देग में एक मक्खी गिर गई। भांडाशाह ने उस मक्खी को निकालकर हाथ से निचोड़ दिया व घी से सने हाथों का घी अपनी जूतियों पर चुपड़ दिया। भांडाशाह के इस कृत्य को देख वास्तुकार के मन में शंका जागृत हुई कि जो घी में पड़ी मक्खी को निचोड़ कर घी निकाल ले वह भला भव्य मंदिर का निर्माण कैसे करवा सकता है? वास्तुकार ने बातों ही बातों में भांडाशाह को परखने की गर्ज से कहा कि अगर आप एक भव्य मंदिर को बनवाना ही चाहते हैं तो मंदिर की नींवें घी से भरवा दें तो कैसा रहेगा? इतना सुनने के बाद भांडाशाह ने भी ठान लिया कि वे मंदिर की नींवें घी से ही भरवाएंगे। ज्यों ही मंदिर निर्माण के लिए नींवें खोदने का कार्य शुरू हुआ तो भांडाशाह ने भी दिल खोलकर 40 हजार सेर घी नीवों में डलवाना प्रारम्भ कर दिया।

इन्हीं नीवों पर एक भव्य कलात्मक मंदिर खड़ा कर दिया गया। मंदिर निर्माण के लिए जैसलमेर से लाल पत्थर हाथी व बैलगाड़ियों में भरकर मंगवाया गया। इन पत्थरों को तराशकर कलात्मक रूप कारीगरों ने छैनी व हथौड़े से गढ़-गढ़ कर दिया। मंदिर निर्माण में घी के व्यापारी भांडाशाह ने दिल खोलकर पैसा खर्च किया हालांकि मंदिर बनने में काफी समय लगा। विशेष रूप से यह मंदिर पांचवें जैन तीर्थकर भगवान सुमितनाथ को समर्पित है। भांडाशाह द्वारा निर्मित मंदिर कारीगिरी का अनुपम नमूना है। मंदिर निर्माण में लगे पत्थर किसी चूने या मुड्ड से नहीं बल्कि कारीगरों ने अपने कला कौशल के जरिये लॉक सिस्टम से जोड़े।

मंदिर की दीवारों पर कौड़ियों को घिसकर प्लास्टर किया गया। समूचा मंदिर कला की अनूठी मिसाल है जिसको कारीगरों ने अपनी निर्माण शैली से इतना खूबसूरत बनाया है कि मंदिर जितना बाहर से, उतना ही भीतर से भी खूबसूरत दिखाई देता है। मंदिर का गर्भगृह हो या आंतरिक छतें, भित्ति चित्रों की दृश्यावली अनायस ही देखने वालों का मन मोह लेती है। मंदिर में उकेरे गए भित्ति चित्रों को ईरान व इराक के चित्रकारों ने बनाया है जो करीब 200 वर्ष पूर्व के हैं। भांडाशाह मंदिर 115 फुट क्षेत्र में बना हुआ है जिसके चारों तरफ जैन धर्म के 24 तीर्थकराें की कलात्मक मूर्तियां उकेरी गई हैं जिसे देखकर पर्यटक आज भी अचंभित रह जाते हैं। बीकानेर आने वाला प्रत्येक पर्यटक भांडाशाह जैन मंदिर के दर्शन कर इसे निहारे बिना नहीं लौटता है।

 

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