हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 3 अगस्त 2024

धर्म : जैतसरी महला ९ ॥ हरि जू राखि लेहु पति मेरी ॥ जम को त्रास भइओ उर अंतरि सरनि गही किरपा निधि तेरी ॥१॥ रहाउ ॥ महा पतित मुगध लोभी फुनि करत पाप अब हारा ॥ भै मरबे को बिसरत नाहिन तिह चिंता तनु जारा ॥१॥ कीए उपाव मुकति के कारनि दह दिसि कउ.

धर्म : जैतसरी महला ९ ॥ हरि जू राखि लेहु पति मेरी ॥ जम को त्रास भइओ उर अंतरि सरनि गही किरपा निधि तेरी ॥१॥ रहाउ ॥ महा पतित मुगध लोभी फुनि करत पाप अब हारा ॥ भै मरबे को बिसरत नाहिन तिह चिंता तनु जारा ॥१॥ कीए उपाव मुकति के कारनि दह दिसि कउ उठि धाइआ ॥ घट ही भीतरि बसै निरंजनु ता को मरमु न पाइआ ॥२॥

अर्थ : हे प्रभु जी! मेरी लाज रख लो । मेरे हृदय में मौत का डर बस रहा है, (इस से बचने के लिए) हे कृपा के खजाने प्रभु! मैने तेरा सहारा लिया है॥१॥ रहाउ॥ हे प्रभु! मैं बड़ा विकारी हूँ, मुर्ख हूँ, लालची भी हूँ, पाप करता करता अब मैं थक गया हूँ। मुझे मरने का डर (किसी समय) भूलता नहीं, इस (मरने) की चिंता ने मेरा सरीर जला दिया है॥१॥ (मौत के इस डर से) खलासी हासिल करने के लिए मैने अनेकों यतन किये हैं, दस तरफ उठ उठ कर भागा हूँ। (माया के मोह से) निर्लेप परमात्मा हृदय में ही बस्ता है, उस का भेद मैं नहीं समझ सका॥२॥

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