Maha Kumbh : प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र धार्मिक आयोजन है, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक कार्यक्रम माना जाता है। इस महाकुंभ में शामिल होने के लिए दूर दूर से और देश के अलग-अलग हिस्सों से श्रद्धालु आ रहे हैं। इस समय हर कोई महाकुंभ के अद्भुद नजरो और जश्न में डूबा हुआ है। वहीं श्रद्धालु अपने आस्था के अनुसार इस महाकुंभ के पुण्य को कमाना चाहते है। इस महाकुंभ में आये एक दम्पति ने ऐसा दान किया जिसे देख हर कोई हैरान रह गया। दरसअल इस दम्पति ने अपनी 13 साल की बेटी को संगम पर दान कर दिया। यह कहानी अपने आप में दिलचस्प है तो चलिए जानते है इस कहानी को विस्तार से…
महाकुंभ में इस दंपत्ति ने दान कर दी अपनी 13 साल की बेटी
दरअसल हिन्दू धर्म की मान्यता है कि कुम्भ, महाकुम्भ और माघ मेले में किए दान का विशेष महत्त्व होता है। क्योंकि कहा जाता है कि दान करने से पुण्य मिलता है और पापों से भी मुक्ति मिलती है। उत्तर प्रदेश के आगरा से आए इस दम्पति ने जिनका नाम दिनेश ढाकरे और रीमा है, इस माता पिता ने सनातन धर्म की राह पर चलते हुए अपनी 13 साल की बेटी को जूना अखाड़े में दान कर दिया। हालांकि माता पिता को इस दान से बहुत ख़ुशी है कि अब उनकी बेटी धार्मिक कार्यों में लगी रहेगी।
इस दान से बहुत खुश है परिवार
इस मामले पर बच्ची की माँ का कहना है कि हर माँ बाप यही सोचते है कि वह अपने बच्चे को पढ़ाये और उसकी अच्छे घर शादी विवाह करें। लेकिन गौरी को शादी से शुरू से ही नफरत है। मां ने कहा यह सब ऊपर वाले की मर्जी से हुआ है। हालांकि हमें बहुत ख़ुशी हैं और गौरी भी इस बात से खुश है। बता दें कि उनका कहना है कि गौरी के अंदर पूजाभाव व भक्ति करते कोई शक्ति जग गई और उसने विचार किया कि उसे भजन करना है और साधु बनना है। गौरी के माता पिता ने बताया कि हम लोगों की तरफ से ऐसा करने का कोई दबाव नहीं है ये फैसला उसने अपने इच्छा अनुसार लिया है।
गौरी ने कहा- मुझे अब यही रहना है और मुझे किसी प्रकार का मोह नहीं
वहीं दान की गई बच्ची गौरी ने कहा कि, हम 2-3 दिन के लिए महाकुंभ में घूमने आए थे, लेकिन अचानक बच्ची का मन बदल गया और वह अब घर नहीं जाना चाहती है। उसने बताया कि जब वो 11 साल की थी तब से ही उसका मन भक्ति भाव के लिए जागृत हो गया। उसे भजन और भक्ति करने में आनंद आता है। गौरी ने कहा कि मुझे अब यही रहना है और मुझे किसी प्रकार का मोह नहीं है। पहले का जीवन अच्छा नहीं था उसमें लोग खोसते थे लेकिन अब खुलकर जीने का मौका मिलता है।
संत संत कौशल गिरी ने कहा कि सनातन धर्म का प्रचार है और ये माता पिता ने जो काम किए है वो एक विरले लोग ही ऐसा कर पाते है। उन्होंने बताया कि गौरी को पूरी परंपरा के साथ जूना अखाड़े में शामिल कराया गया। लेकिन अभी बच्ची का संस्कार बाकी है जिसमें पिंडदान और तड़पन कराया जाएगा ताकि वह पूरी तरीके से अखाड़ा के रिवाजों में शामिल हो जाए। महंत के अनुसार उसे आध्यात्मिक शिक्षा दी जाएगी।