गुवाहाटी: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने सोमवार को एक नए नैनो मैटेरियल को डिवैल्प किया है, जिससे बिना अधिक खर्च के मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक विषाक्त धातुओं का पता लगाने में मदद मिल सकती है। पारा दूषित भोजन, पानी, हवा या त्वचा के संपर्क में आने से शरीर में प्रवेश कर सकता है। इनके संपर्क से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं, जिनमें तंत्रिका तंत्र को नुक्सान, अंगों का काम करना बंद करना और कॉग्निटिव नुक्सान शामिल हैं। वैज्ञानिकों की एक टीम ने ऐसे नैनो कणों का विकास किया है जो धातुओं से बने होते हैं और बहुत स्थिर होते हैं। ये नैनो कण जीवित कोशिकाओं में मौजूद जहरीली धातुओं जैसे पारे का पता लगा सकते हैं, बिना उन्हें कोई नुक्सान पहुंचाए।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस नए आविष्कार से रोगों का पता लगाने और पर्यावरण की निगरानी में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। यह जैविक प्रणालियों में धातुओं की विषाक्तता का पता लगाने और उसका प्रबंधन बेहतर बनाएगा। आईआईटी गुवाहाटी के भौतिकी विभाग के सहायक प्रोफैसर सैकत भौमिक ने कहा, ‘इन पैरोव्स्काइट नैनोक्रिस्टल की एक प्रमुख विशेषता उनकी उनकी संकीर्ण उत्सजर्न रेखा है, जो धातु का पता लगाने के लिए हाई सिग्नल-टू-नोइस अनुपात के कारण संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए उपयुक्त है।‘
भौमिक ने कहा कि पारंपरिक इमेजिंग विधियां अक्सर प्रकाश के बिखराव से जूझती हैं, जिससे गहरी कोशिका परतों से स्पष्ट छवियों को कैप्चर करना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा, ‘पैरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल की मल्टी फोटोन अवशोषण से गुजरने की क्षमता इस सीमा को पार कर जाती है, जिससे अधिक स्पष्ट और अधिक डिटेल इमेजिंग मिलती है। ये गुण उन्हें चिकित्सा और जैविक अनुसंधान में उन्नत फ्लोरोसेंस इमेजिंग के लिए आदर्श बनाते हैं।‘