14वीं चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के तीसरे पूर्णाधिवेशन ने 7 मार्च को प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने “चीन की विदेश नीति और विदेशी संबंधों” से संबंधित मुद्दों पर चीनी और विदेशी पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए।
आइए पहले जानते हैं कि अपने वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में वांग यी ने क्या कहा। वांग यी ने कहा कि भारत-चीन संबंधों में सकारात्मक प्रगति हुई है। सीमा गतिरोध खत्म होने के बाद दोनों देशों के बीच हर स्तर पर बेहतर स्थितियां देखने को मिल रही हैं। दोनों देशों के संबंधों की चर्चा करते हुए वांग यी ने भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच रूस के कजान में हुई बैठक का हवाला देते हुए कहा कि इसके बाद दोनों पड़ोसी देशों के रिश्ते बेहतर हुए हैं। वांग यी ने आगे कहा कि दो प्राचीन सभ्यताओं के तौर पर चीन और भारत के पास सीमा मुद्दे के निष्पक्ष और उचित समाधान होने तक सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए बेहतर समझ है। वांग यी ने कहा कि चीन और भारत, दोनों देशों को द्विपक्षीय संबंधों के बीच कभी भी सीमा का सवाल या किसी अन्य मतभेद के संदर्भ में परिभाषित नहीं करना चाहिए।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से चीन और भारत से अमेरिका होने वाले आयात पर टैरिफ थोपने के बाद दुनिया में ट्रेड वार यानी कारोबारी जंग की आशंका बढ़ती जा रही है। भारत पर तो टैरिफ थोपने का अमेरिका में ही विरोध शुरू हुआ तो ट्रंप ने इसे लागू करने की तारीख को बढ़ाकर दो अप्रैल कर दी, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि अमेरिका कारोबार जंग से पीछे हट रहा है।
कुछ साल पहले अमेरिका ने चीन से आयात होने वाली वस्तुओं पर शुल्क लगाया। ऐसा करते वक्त अमेरिका को उम्मीद थी कि चीन और बाकी दुनिया से उसका आयात घटेगा तथा उसका अपना उत्पादन बढ़ेगा। शुरूआती दौर में ऐसा दिखा भी। चीन से अमेरिका होने वाले आयात में 2017 और 2023 के बीच 81.56 अरब डॉलर की कमी आई, जो 519.52 अरब डॉलर से घटकर 437.96 अरब डॉलर रह गई। बेशक चीन से यह कमी हुई, लेकिन उसका आयात दूसरे देशों से बढ़ा। इसकी वजह से अमेरिका के कुल आयात में 31.51 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई, जो 2,310 अरब डॉलर से 3,040 अरब डॉलर तक पहुंच गई। यह 763.1 अरब डॉलर की बढ़ोत्तरी रही, जो चीन से हुई आयात कमी का लगभग 10 गुना रहा। साफ है कि अमेरिका का कुछ भी फायदा नहीं हुआ। इस बीच चीन का दुनिया भर में निर्यात बढ़ा, जो आंकड़ों के लिहाज से 1,100 अरब डॉलर रहा। जबकि अमेरिकी निर्यात सिर्फ 383 अरब डॉलर ही ज्यादा हुआ, जो 1,690 अरब डॉलर तक ही रहा। दरअसल अमेरिका में चीन से आयात भले घटा, लेकिन दूसरे देशों से बढ़ गया। इसका सबसे ज्यादा फायदा मेक्सिको को मिला। मेक्सिको से अमेरिकी आयात में 2017 और 2023 के बीच 164.3 अरब डॉलर की बढ़त देखी गई। इसके बाद नंबर रहा कनाडा का, जिसका अमेरिका को निर्यात 124 अरब डॉलर रहा। इसी तरह वियतनाम का 70.5 अरब डॉलर, दक्षिण कोरिया का 46.3 अरब डॉलर और जर्मनी का निर्यात 43 अरब डॉलर बढ़ा। इस सूची में छठें नंबर भारत रहा, जिसका इस दौरान निर्यात 36.8 अरब डॉलर बढ़ा। भारत से होने वाले निर्यात मे सबसे ज्यादा 6.2 अरब डॉलर की वृद्धि स्मार्टफोन और दूरसंचार उपकरणों में हुई, जो बढ़त की 17.2 फीसद रही। दवा क्षेत्र, पेट्रोलियम उत्पाद और सोलर सेल के अमेरिका को भारतीय निर्यात में भी बढ़ोतरी देखी गई। सोने के गहने और प्रयोगशाला में बने हीरा का भी निर्यात बढ़ा। कपड़े, ऑटो पार्ट्स, इलेक्ट्रिक ट्रांसफॉर्मर और ट्रांसमिशन शॉफ्ट जैसे सामानों का निर्यात बढ़ा।
दरअसल भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले काफी सामान दरअसल भारत में असेंबल होते हैं और उनके मूल पुर्जे दूसरे देशों से मंगाए जाते हैं। मसलन स्मार्टफोन के ज्यादातर पुर्जे आयात किए जाते हैं, जो चीन से भी होते हैं और दूसरे देशों से भी। इसी तरह सोलर पैनल के सोलर सेल मुख्य रूप से चीन से आते हैं। इसी तरह दवा के लिए 70 प्रतिशत तक मूल सामग्री चीन से मंगाए जाते हैं।
वांग यी ने कहा कि चीन का मानना है कि सबसे बड़े पड़ोसी होने के नाते चीन और भारत को एक-दूसरे की सफलता में हिस्सेदार बनना चाहिए। ड्रैगन और हाथी के बीच सहयोगात्मक साझेदारी ही दोनों पक्षों के सामने एकमात्र सही विकल्प है। एक-दूसरे को कमतर आंकने के बजाय आपस में समर्थन करना चाहिए। दोनों देशों को एक-दूसरे के खिलाफ सतर्कता बरतने की जगह साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।
2023 के आंकड़ों के मुताबिक, चीन 19.37 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है. जबकि 3.73 ट्रिलियन डॉलर के साथ भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अगर ये दोनो अर्थव्यवस्थाएं मिल गईं, तो अमेरिकी कंपनियों के बड़े बाजार पर भी संकट होगा। क्योंकि दोनों देशों की जनसंख्या करीब तीन अरब है और उसमें बड़ा मध्य वर्ग है,जो दुनिया का सबसे बड़ा खरीददार है।
वैसे भी भारत और चीन के बीच राजनयिक रिश्तों की 75वीं वर्षगांठ आने वाली है। ऐसे में अगर दोनों देश सावधानी बरतते हुए कारोबारी मोर्चे पर साथ आएँ तो दुनिया की यह बड़ी घटना तो होगी ही, अमेरिकी कारोबारी वर्चस्व के लिए बड़ी चुनौती भी होगी।
(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग) (लेखक— उमेश चतुर्वेदी)