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आखिर ऐसा क्या हुआ था उस रात जो मर गया पूरा गांव, इंसान तो दूर मक्खियां तक नहीं बची थीं जिंदा

कार्बन डाइऑक्साइड’ गैस कितनी खतरनाक हो सकती है. इसे एक अफ्रीकी गांव में घटित हुई घटना से समझ सकते है. ‘कार्बन डाइऑक्साइड’ गैस ने एक ‘साइलेंट किलर’ की तरह काम किया और पूरे गांव को मार गिराया. इंसानों, जानवरों और यहां तक की मक्खियों का भी दम घुट गया. इस घटना को ‘न्योस डिजास्टर लेक’ के नाम से जाना जाता है. जिसमें कुल मिलाकर 1746 लोगों और लगभग 3,500 जानवरों की मृत्यु हो गई।

1 अगस्त 1986 की रात लगभग 9 बजे एक पश्चिमी अफ्रीकी गांव न्योस [Nyos] में लोगों ने जोर से गड़गड़ाहट की आवाज सुनी. अगली सुबह ग्रामीणों में से एक एफ़्रैम चे [Ephraim Che] उठा तो पाया कि लगभग सभी लोग जिन्हें वह जानता था वह मर चुके थे। तभी उसे एक महिला के रोने की आवाज सुनाई दी. जिसके बाद वह महिला के चला आया. वहां पहुंच कर उसे पता चला कि वह महिला हलीमा थी।

एफ़्रैम ने बताया कि हलीमा ने अपने बच्चों की मौत पर बुरी तरह से चित्कार कर रही थी. इसके बाद, एफ़्रैम ने अपने परिवार के 30 से अधिक अन्य सदस्यों और उनके 400 जानवरों को देखा. एफ़्रैम ने याद करते हुए कहा, ‘उस दिन मृतकों पर कोई मक्खियां नहीं थीं. यहां तक कि कीड़े भी अ मारे गए थे।

न्योस झील की आपदा का मुख्य कारण झील की गहरी परतों में घुली हुई कार्बन डाइऑक्साइड गैस का जमा होना था. विस्फोट के साथ न्योस झील की गहराई में से भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकली, जिससे न्योस गांव की हर जीवित चीज मर चुकी थी। कुछ जीवित बचे लोगों ने झील से आने वाली बारूद या सड़े अंडे जैसी दुर्गंध की सूचना दी, जिससे पता चलता है कि झील से गैस का रिसाव हुआ था.

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