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Moon मिशन पर Chandrayaan-3, जानिए चांद से जुडी कुछ दिलचस्प जानकारियां

नई दिल्ली : भारत द्वारा लांच किया गया चंद्रयान-3 अपने मिशन पर है। इस दौरान वह चांद पर 14 दिन रहेगा और भारत को चांद से जुडी महत्वपूर्ण जानकारियां देगा। ऐसे में चाँद पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। आइए आपको बताते हैं चांद की कुछ दिलचस्प बातें। कैसे बना चंद्रमा चंद्र.

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नई दिल्ली : भारत द्वारा लांच किया गया चंद्रयान-3 अपने मिशन पर है। इस दौरान वह चांद पर 14 दिन रहेगा और भारत को चांद से जुडी महत्वपूर्ण जानकारियां देगा। ऐसे में चाँद पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। आइए आपको बताते हैं चांद की कुछ दिलचस्प बातें।

कैसे बना चंद्रमा
चंद्र को जीवाश्म ग्रह भी कहा जाता है। इंटरनेट पर मौजूद जानकारी के अनुसार चांद मुख्य तौर पर ऑक्सीजन, सिलिकाॅन, मैग्नीशियम, लोहा, कैल्शियम तथा अल्युमीनियम से बना है। चंद्रमा लगभग 4.5 करोड़ वर्ष पूर्व धरती और थीया ग्रह (मंगल के आकार का एक ग्रह) के बीच भीषण टक्कर हुई, जिसके बाद जो मलबा पैदा हुआ, उसके अवशेषों से बना था।

नेचुरल सैटेलाइट
चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। यह पृथ्वी के चारों ओर लगभग 239,000 मील यानी 385,000 किलोमीटर की दूरी तय करता है। यह पृथ्वी कि परिक्रमा 27 दिन 6 घंटे में पूरा करता है और अपने अक्ष के चारो ओर एक पूरा चक्कर भी 27.3 दिन में लगाता है। अगर सूर्य से इसके आकार की तुलना की जाए तो इसका आकार सूर्य से 400 गुना छोटा है।

लहरों पर कंट्रोल
चांद समुद्र में ज्वार-भाटा को कंट्रोल करता है। चांद की चुंबकीय शक्ति से समुद्र का जलस्तर बढ़ता है जिसे ज्वार कहते हैं। जब चांद समुद्र के उस इलाके से हटता है तो जलस्तर घट जाता है जिसे भाटा कहते हैं। यह नदी के मुहाने की सफाई तथा नव वहन संचालन में काफी मददगार होता है।

चंद्रमा की सतह पर बर्फ या पानी
एलआरओ और एलसीआरओएसएस के निष्कर्षों से इस बात के सबूत बढ़ गए हैं कि चंद्रमा पर स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्रों में बर्फ के रूप में पानी मौजूद है।

चांद पर कदम
अंतरिक्ष में पृथ्वी के बाद सिर्फ चांद ही है जहां इंसान ने उसकी सतह पर कदम रखा है। अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने। 11 अप्रैल 1970 को नासा ने अपोलो 13 लॉन्च किया।

हवा की कमी
चांद पर वायुमंडल की बहुत ही पतली परत है, जिसकी वजह से इंसान वहां सांस नहीं ले सकता। वायुमंडल की पतली परत को एक्सोस्फेयर कहते हैं। वहां सांस लेने के लिए स्पेस सूट तथा हेलमेट जरूरी है।

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