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हिमालय से भी 500 करोड़ साल पुरानी है झारखंड के राजमहल की पहाड़िया - Dainik Savera Times | Hindi News Portal
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हिमालय से भी 500 करोड़ साल पुरानी है झारखंड के राजमहल की पहाड़िया

कार्बन डेटिंग से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि झारखंड स्थित राजमहल की पहाड़ियां हिमालय से भी 500 करोड़ साल पुरानी हैं। यहां मौजूद जीवाश्मों पर देश-विदेश के भूगर्भ शास्त्रियों और पुरा-वनस्पति (पैलियोबॉटनी) विज्ञानियों के कई समूह दशकों से लगातार शोध कर रहे हैं और इस क्रम में जीवन को लेकर कई नए रहस्य.

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कार्बन डेटिंग से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि झारखंड स्थित राजमहल की पहाड़ियां हिमालय से भी 500 करोड़ साल पुरानी हैं। यहां मौजूद जीवाश्मों पर देश-विदेश के भूगर्भ शास्त्रियों और पुरा-वनस्पति (पैलियोबॉटनी) विज्ञानियों के कई समूह दशकों से लगातार शोध कर रहे हैं और इस क्रम में जीवन को लेकर कई नए रहस्य सामने आ रहे हैं। अब झारखंड के एक पुरातत्वविद् पं. अनूप कुमार वाजपेयी ने दावा किया है कि दुमका जिले की महाबला पहाड़ियों पर आदि मानव के पैरों की छाप, हिरण के खुर और गिलहरी एवं मछली के जीवाश्म वाली चट्टानें हैं।

उन्होंने इन पदछापों की उम्र 30 करोड़ साल से भी अधिक होने की संभावना जताई है और इसके साथ ही यह दावा भी किया है कि आदि मानवों की लंबाई 10 से 14 फुट तक रही होगी। पं. अनूप वाजपेयी के शोध आधारित दावे के बाद झारखंड सरकार के पथ निर्माण विभाग ने यहां 2 बोर्ड लगाए हैं, जिसमें यहां जीवाश्म होने की जानकारी दी गई है। वाजपेयी ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी मिलकर उन्हें अपने अध्ययन निष्कर्षों से अवगत कराया है। उन्होंने अपने अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर एक पुस्तक भी लिखी है, जिसे दिल्ली की एक प्रकाशन संस्था ने छापा है।

इसके बाद जीवाश्मों के अध्ययन में रुचि रखने वाले शोधार्थियों के अलावा पर्यटक इन पदचिन्हों को देखने पहुंच रहे हैं। जिस चट्टान पर ये अवशेष पाए गए हैं, वह जरमुंडी प्रखंड की झनकपुर पंचायत के बरमसिया में घाघाजोर नदी के किनारे स्थित हैं। बकौल वाजपेयी, पदचिन्हों को देखकर प्रतीत होता है कि आदि मानव कभी इस स्थल के आसपास रहे होंगे इसलिए उनके कदमों के निशान इस जगह पर बने। प्रलय के कारण सब कुछ खत्म हो गया, लेकिन जीवाश्म अब भी राजमहल की पहाड़ियों में बहुतायत में मौजूद हैं।

उल्लेखनीय है कि 2600 वर्ग किलोमीटर में फैली राजमहल की पहाड़ियों में जुरासिक काल के फॉसिल्स सबसे पहले भारतीय पुरावनस्पति विज्ञान यानी इंडियन पैलियोबॉटनी के जनक प्रो. बीरबल साहनी ने तलाशे थे। वे 1935 से 1945 के बीच फॉसिल्स की तलाश और उनपर रिसर्च में यहां दर्जनों बार आए थे और पहाड़ियों के बीच काफी लंबा वक्त गुजारा था। उन्होंने जो फॉसिल्स तलाशे, उनके कई नमूने लखनऊ स्थित बीरबल साहनी संस्थान में संरक्षित करके रखे गये हैं, जो दुनिया भर के भूगर्भशास्त्रियों के लिए रिसर्च का विषय है। बीरबल साहनी के महत्वपूर्ण रिसर्च को देखते हुए जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने राजमहल की पहाड़ियों को ‘भूवैज्ञानिक विरासत स्थल’ का दर्जा दे रखा है।

कई जीवाश्म की तलाश
वाजपेयी ने राजमहल की पहाड़ियों की शृंखला से जुड़ी महाबला पहाड़ी में ऐसे 9 पदचिन्हों की तलाश की है। इसके अलावा उन्होंने गिलहरी व मछली की आकृति, हिरण के खुर जैसे जीवाश्म की तलाश करने का भी दावा किया है। ये आकृतियां काफी बड़ी हैं और इसके आधार पर उनका अनुमान है कि उस समय के इंसान व अन्य जीव आकृति में भी बड़े रहे होंगे। कथित आदि मानव के पदचिन्हों के 2 डग के बीच की दूरी डेढ़ से पौने दो मीटर तक है। पैर का अंगूठा करीब 2 इंच से अधिक मोटा है। पंजा करीब 1 फुट का है। इसी के आधार पर वह उस दौर के इंसानों की ऊंचाई 10 से 14 फुट होने की संभावना जताते हैं। उनका कहना है कि ये जीवाश्म कार्बोनिफेरस एरा के हो सकते हैं।

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