बहराइच। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में पिछले कुछ महीनों से ग्रामीणों पर हमला कर रहे आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग बच्चों की पेशाब में भिगोई गई रंग-बिरंगी गुड़ियों का इस्तेमाल कर रहा है। इन टेडी डॉल को दिखावटी चारे के रूप में नदी के किनारे भेड़ियों के आराम स्थल और मांद के पास लगाया गया है। टेडी डॉल को बच्चों की पेशाब से भिगोया गया है, ताकि इनसे बच्चों जैसी गंध आए और भेड़िये इनकी तरह खींचे चले आएं।
प्रभागीय वनाधिकारी अजीत प्रताप सिंह ने सोमवार को बताया, हमलावर भेड़िये लगातार अपनी जगह बदल रहे हैं। अमूमन ये रात में शिकार करते हैं और सुबह होते-होते अपनी मांद में लौट जाते हैं। ऐसे में ग्रामीणों और बच्चों को बचाने के लिए हमारी रणनीति है कि इन्हें भ्रमित कर रिहायशी इलाकों से दूर किसी तरह इनकी मांद के पास लगाए गए जाल या पिंजरे में फंसने के लिए आकर्षित किया जाए। सिंह ने कहा, इसके लिए हम थर्मल ड्रोन से भेड़ियों की लोकेशन के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं। फिर पटाखे जलाकर, शोर मचाकर या अन्य तरीकों से इन्हें रिहायशी गांव से दूर सुनसान जगह ले जाकर जाल के नजदीक लाने की कोशिश की जा रही है।
हमलावर जानवर अधिकांश बच्चों को अपना निशाना बना रहे हैं, इसलिए जाल और पिंजरे के पास हमने बच्चों के आकार की बड़ी-बड़ी टेडी डॉल लगाई हैं। उन्होंने बताया कि टेडी डॉल को रंग-बिरंगे कपड़े पहनाकर इन पर बच्चों के मूत्र का छिड़काव किया गया है और फिर जाल के पास व पिंजरों के अंदर इस तरह से रखा गया है कि देखने से भेड़िये को इनसानी बच्चा बैठा होने या सोता होने का भ्रम हो।
सिंह के मुताबिक, बच्चे का मूत्र भेड़ियों को टेडी डॉल में नैर्सिगक इनसानी गंध का एहसास दिलाकर अपने नजदीक आने को प्रेरित कर सकता है। दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के फील्ड निदेशक व कर्तिनयाघाट वन्यजीव विहार के डीएफओ रह चुके वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी रमेश कुमार पांडे ने तराई के जंगलों में काफी वर्षों तक काम किया है। इन दिनों वह भारत सरकार के वन मंत्रालय में महानिरीक्षक (वन) के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं।