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ED ने जाल बिछा इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से पकड़ा 3,558 करोड़ रुपये घोटाले का मास्टमाइंड

नेशनल। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (आईजीआई एयरपोर्ट) से सुखविंदर सिंह खरूर और डिंपल खरूर को गिरफ्तार किया है। ये दोनों आरोपी देश छोड़कर भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन लुक आउट सर्कुलर (LoC) के कारण एयरपोर्ट पर ही उन्हें रोक लिया गया। ईडी अधिकारियों के अनुसार, यह गिरफ्तारी व्यूनाउ मार्केटिंग सर्विसेज लिमिटेड (Vuenow Marketing Services Ltd.) और इससे जुड़ी अन्य कंपनियों के खिलाफ चल रही मनी लॉन्ड्रिंग जांच के तहत की गई है। ईडी ने गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) पुलिस द्वारा दर्ज एक प्राथमिकी के आधार पर इस मामले की जांच शुरू की थी।

क्या है 3,558 करोड़ रुपये का घोटाला?

इस मामले को ‘क्लाउड पार्टिकल स्कैम’ (Cloud Particle Scam) के नाम से जाना जा रहा है। इस घोटाले में निवेशकों को झूठे ‘सेल एंड लीज-बैक’ (SLB) मॉडल के जरिए फंसाया गया। ईडी की जांच में खुलासा हुआ कि व्यूनाउ ग्रुप के सीईओ और संस्थापक सुखविंदर सिंह खरूर ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इस घोटाले को अंजाम दिया।

कैसे हुआ घोटाला?

ईडी के अनुसार, क्लाउड पार्टिकल टेक्नोलॉजी के नाम पर निवेशकों से भारी रकम जुटाई गई। लेकिन असल में या तो इस तकनीक का कोई वास्तविक व्यापार था ही नहीं, या फिर इसे निवेशकों को गुमराह करने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया। इस फर्जी निवेश योजना के जरिए लगभग 3,558 करोड़ रुपये निवेशकों से ऐंठे गए और इस रकम को गैर-व्यावसायिक कार्यों में इस्तेमाल किया गया।

अदालत में पेशी और आगे की कार्रवाई

गिरफ्तारी के बाद सुखविंदर सिंह खरूर और डिंपल खरूर को जालंधर की एक अदालत में पेश किया गया। अदालत ने उन्हें आगे की जांच के लिए ईडी की हिरासत में भेज दिया। ईडी अब इस घोटाले में शामिल अन्य लोगों की भूमिका और काले धन के लेन-देन की जांच कर रही है।

क्या है ‘सेल एंड लीज-बैक’ (SLB) मॉडल?

SLB मॉडल के तहत निवेशकों को यह विश्वास दिलाया जाता है कि वे किसी कंपनी की संपत्तियों को खरीद सकते हैं और फिर उसे उसी कंपनी को किराए पर देकर भारी मुनाफा कमा सकते हैं। हालांकि, इस मामले में यह पूरा मॉडल एक धोखा निकला। निवेशकों से रकम तो ली गई, लेकिन असल में कोई वास्तविक निवेश नहीं हुआ। ईडी अब इस पूरे घोटाले से जुड़े अन्य व्यक्तियों और कंपनियों की भूमिका की जांच कर रही है। यह भी पता लगाया जा रहा है कि यह रकम किन-किन जगहों पर भेजी गई और इसका इस्तेमाल कहां-कहां किया गया।

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