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Kargil Vijay Diwas : कैप्टन Vikram Batra ने दुश्मनों के उड़ा दिए थे तमाम बंकर्स… दुश्‍मन भी कांपते थे थर-थर, जरूर पढ़ें ये अनसुना किस्सा

पालमपुर : देश आज 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस (Kargil Diwas) की 25वीं वर्षगांठ विजय दिवस के रूप में मना रहा है। कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए थे और 1363 सैन्यकर्मी घायल हुए। 1999 के कारगिल युद्ध का उद्देश्य पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ना था। लेह की भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिशों को रोकना था। युद्ध तब समाप्त हुआ, जब भारतीय सैनिकों ने आखिरी घुसपैठिए को बाहर निकाल दिया। पाक सेना का अगला चरण द्रास-मुश्कोह-काकसर में घुसपैठ में शामिल होना हैं। दुश्मन जाेजिला और लेह के बीच मुश्कोह, द्रास, कारगिल, बटालिक और तुरतुक उप-क्षेत्रों में घुस गए। नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय क्षेत्र में 4-10 किमी तक घुसपैठ की।

मुश्कोह में स्थापित चौकियों का इस्तेमाल कश्मीर घाटी, किश्तवाड़-भद्रवाह और हिमाचल के आसपास के इलाकों में घुसपैठ के लिए लॉन्चिंग पैड के रूप में किया जाना था। बटालिक-यल्दोर सेक्टर में, पाकिस्तानी सेना को सिंधु नदी की ओर देखने वाली रणनीतिक ऊंचाइयों पर कब्जा करना था। द्रास-मुश्कोह सेक्टरों में घुसपैठ के लिए पांच एनएलआई बटालियन तैनात की गईं और बाद में नियंत्रण रेखा के पाकिस्तान की ओर सड़क खुलने के बाद एक फ्रंटियर फोर्स बटालियन को जोड़ा गया। संख्या के संदर्भ में और ऑपरेशन को जिहाद का रूप देने के लिए, इन बटालियनों को काफी बढ़ाया गया और विभिन्न तंजीमों के आतंकवादियों के साथ समूहित किया गया और संभवतः पोर्टिंग और रेडियो संचार के लिए तैनात किया गया।

अग्नि सहायता : क्षेत्र में पहले से ही तैनात 22 अग्नि इकाइयों के अलावा 10 से 11 अग्नि इकाइयों को थिएटर में लाया गया था। छोटे हथियारों से लेकर सतह से हवा में कंधे से दागी जाने वाली मिसाइलें, वायु रक्षा हथियार, मध्यम और भारी मशीन गन, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चर तक विभिन्न प्रकार के जमीनी समर्थन हथियार तैनात किए गए थे। पाकिस्तान द्वारा टोही, सुदृढीकरण और पुनःपूर्ति के लिए हेलीकॉप्टरों का उपयोग किया गया था।

कैप्टन रघुनाथ सिंह ने बताया कि शेरशाह उर्फ कैप्टन विक्रम बत्रा को उनकी सेना में 18 महीने की सेवा के बाद ही कारगिल युद्ध में जाना पड़ा, उस वक्त वह खुद सूबेदार के तौर पर उनके साथ थे। 22 जून 1999 को द्रास सेक्टर की जिस चोटी पर दुश्मन ने कब्जा कर लिया था। कैप्टन विक्रम बत्रा ने वीरता दिखाते हुए 10 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और उस चोटी पर तिरंगा लहराया। कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने कमांडिंग ऑफिसर को फोन पर चोटी फतह करने की जानकारी दी। इसी के साथ बोला, ‘सर, अब मुझे दूसरा काम दे दीजिए, क्योंकि ‘ये दिल मांगे मोर’। कैप्टन बत्रा का नारा ‘ये दिल मांगे मोर’ बाद में पूरे देश में मशहूर हो गया।

इसके बाद 7 जुलाई 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा को मॉस्को वैली को आजाद कराने का काम सौंपा गया। बहादुरी से लड़े, चोटी को दुश्मन से छुड़ाया
मिशन खत्म हो चुका था, कैप्टन विक्रम बत्रा अपने जूनियर पार्टनर को बचाने गए। लेफ्टिनेंट नवीन बुरी तरह घायल हो गए थे, उन्हें कंधे पर उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले गए। पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला किया, जाे एक गोली कैप्टन विक्रम बत्रा के सीने में लगी। मिशन खत्म हुआ, कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने कनिष्ठ सहयोगी लेफ्टिनेंट नवीन को देखा, जिनका पैर दुश्मन द्वारा फेंके गए ग्रेनेड से बुरी तरह घायल हो गया था। कैप्टन विक्रम बत्रा अपने साथी को कंधे पर उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे। उसी समय पाकिस्तानी सैनिकों ने उन पर करीब से हमला कर दिया और एक गोली उनके सीने में लगी। वह खून से लथपथ थे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने साथी को सुरक्षित स्थान पर ले जाकर पाकिस्तानी सेना के 5 जवानों को मार गिराया और खुद भारत मां का लाल भी शहीद हो गया। कैप्टन बत्रा को उनकी बहादुरी के सम्मान में मरणोपरांत देश के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा वीरता के सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने की थी माधुरी दीक्षित को लेकर घटिया डिमांड

कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना को छेड़ने की कोशिश की थी। एक पाकिस्तान सैनिक ने कहा था- ‘हमें माधुरी दीक्षित दे दो, हम कश्मीर छोड़कर चले जाएंगे’, जिसके बाद बटालियन के कैप्टन शेरशाह उर्फ विक्रम बत्रा ने पाकिस्तानी सेना को अपने स्टाइल में करारा जवाब देते हुए उन्होंने एके-47 से फायरिंग की और कहा था- “माधुरी दीक्षित तो फिलहाल दूसरी फिल्म की शूटिंग में बिजी हैं। तुम गोलियों से काम चला लो” और ये कहते ही कैप्टन विक्रम बत्रा ने दुश्मनों के तमाम बंकर्स उड़ा दिए थे और आगे कहा था- “विद लव फ्रॉम माधुरी’।

 

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