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Uttarakhand में UCC का विरोध, जमीयत उलमा-ए-हिंद ने HC में दायर की याचिका

नेशनल डेस्क : उत्तराखंड में सीएम पुष्कर सिंह धामी सरकार  ने जनवरी में समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू कर दिया गया है। इसके खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस याचिका को कोर्ट में पेश किया गया है और सुनवाई इस सप्ताह के भीतर हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल इस मामले में जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से पैरवी करेंगे।

मौलाना अरशद मदनी की प्रतिक्रिया

आपको बता दें कि जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इस याचिका पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि उनका संगठन संविधान, लोकतंत्र और कानून के राज को बनाए रखने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने पर मजबूर हुआ है। मौलाना ने कहा कि शरीयत के खिलाफ किसी भी कानून को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह मुसलमानों के अधिकारों का सवाल है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की मंशा है कि मुसलमानों से उनके संविधान द्वारा दिए गए अधिकार छीन लिए जाएं।

समान नागरिक संहिता का विरोध

मौलाना मदनी ने कहा कि समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है, क्योंकि पहले से ही वैकल्पिक नागरिक संहिता मौजूद है, जो उन लोगों के लिए है जो धार्मिक पर्सनल लॉ का पालन नहीं करना चाहते। उन्होंने यह भी कहा कि समान नागरिक संहिता को लागू करना संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है। उन्होंने यह तर्क भी दिया कि समान नागरिक संहिता भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है और यह देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक हो सकता है।

संविधान का उल्लंघन

 मदनी ने यह कहा कि समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए अनुच्छेद 44 का हवाला दिया जाता है, जबकि यह केवल एक मार्गदर्शक सिद्धांत है, न कि कोई अनिवार्य कानून। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 का उल्लेख किया, जो नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों को सुरक्षित रखते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी राज्य को समान नागरिक संहिता बनाने का अधिकार नहीं है, और इस तरह यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा

उन्होंने कहा कि जब भी कभी शरिया कानून में हस्तक्षेप करने की कोशिश की गई, जमीयत उलमा-ए-हिंद ने पूरी ताकत से इसका विरोध किया। उन्होंने यह भी बताया कि भारत के इतिहास में कई उदाहरण हैं जहां जमीयत उलमा-ए-हिंद के मार्गदर्शन के बिना शरिया कानून पर कोई कानून नहीं बन पाया।

साम्प्रदायिक ताकतों की साजिश

मौलाना मदनी ने यह आरोप लगाया कि साम्प्रदायिक ताकतें मुसलमानों को लगातार भय और अराजकता में रखना चाहती हैं। उनका कहना था कि यह ताकतें नफरत फैलाकर देश के संविधान को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमानों को इस भय और अराजकता से बचना चाहिए और जमीयत उलमा-ए-हिंद उन ताकतों के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेगी। मौलाना अरशद मदनी और जमीयत उलमा-ए-हिंद के नेता समान नागरिक संहिता के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं, यह मानते हुए कि यह मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है। उनका कहना है कि यह संविधान के धर्मनिरपेक्षता और नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ है। इस मुद्दे पर अदालत में सुनवाई की प्रक्रिया जारी है, और जमीयत उलमा-ए-हिंद के लिए यह मामला बहुत महत्वपूर्ण है।

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