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राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठें, संसदीय संवाद की पवित्रता करें बहाल : Jagdeep Dhankhar

Jagdeep Dhankhar

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Jagdeep Dhankhar : राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संसद के उच्च सदन में हंगामे और व्यवधान पर चिंता जताते हुए शुक्रवार को सदस्यों से आह्वान किया कि देश की लोकतांत्रिक विरासत की मांग है कि वे राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठें और संसदीय संवाद की पवित्रता बहाल करें। राज्यसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने से पहले धनखड़ ने अपने पारंपरिक संबोधन में यह बात कहीं। सत्र के दौरान हुए कम कामकाज पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि वास्तविकता परेशान करने वाली है कि इस सत्र में केवल 40.03 प्रतिशत ही कामकाज हुआ।

उन्होंने कहा, कि ‘इसमें भी केवल 43 घंटे और 27 मिनट ही प्रभावी कामकाज हुआ।’’ सभापति ने कहा, कि ‘बतौर सांसद, हमें भारत के लोगों से कड़ी आलोचना का सामना भी करना पड़ रहा है और यह सही भी है। लगातार व्यवधान हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों में जनता के विश्वास को लगातार खत्म कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि सत्र के दौरान 2024 के तेल क्षेत्र संशोधन विधेयक और बॉयलर विधेयक को पारित किया गया और भारत-चीन संबंधों पर विदेश मंत्री का बयान संपन्न हुआ। उन्होंने कहा, कि ‘ये उपलब्धियां हमारी विफलताओं पर भारी पड़ जाती हैं।’’ धनखड़ ने कहा कि भारत के संविधान को अंगीकार किए जाने की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर इस सत्र को समाप्त करते हुए एक गंभीर चिंतन के क्षण का भी सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा, कि ‘ऐतिहासिक संविधान सदन में संविधान दिवस मनाने का उद्देश्य जहां लोकतांत्रिक मूल्यों की पुन: पुष्टि करना था, इस सभा में हमारे कार्य कुछ और ही कहानी बयां करते हैं।’’ संसद के शतकालीन सत्र की शुरुआत 25 नवंबर को हुई थी और इसके अगले दिन 26 नवंबर को संविधान सदन (पुराने संसद भवन) के केंद्रीय कक्ष में संविधान दिवस पर मुख्य समारोह आयोजित किया गया था। संसद के दोनों सदनों के सदस्य इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इसी केंद्रीय कक्ष में 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार किया गया था।

सभापति धनखड़ ने विपक्षी सदस्यों की ओर से आए दिन नियम 267 का सहारा लेने और सदन में विचार किए जाने से पहले ही नोटिस को मीडिया में प्रकाशित किए जाने पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, कि ‘संसद में विचार किए जाने से पहले मीडिया के माध्यम से नोटिस प्रकाशित करने और नियम 267 का सहारा लेने की बढ़ती प्रवृत्ति हमारी संस्थागत गरिमा को और कमजोर करती है। हम एक महत्वपूर्ण चौराहे पर खड़े हैं, भारत के 1.4 अरब नागरिक हमसे बेहतर की उम्मीद करते हैं।’’ उन्होंने कहा, कि ‘यह सार्थक बहस और विनाशकारी व्यवधान के बीच चयन करने का समय है। हमारी लोकतांत्रिक विरासत की मांग है कि हम राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठें और संसदीय संवाद की पवित्रता बहाल करें।’’

उन्होंने सदन के संचालन में योगदान देने वाले पदाधिकारियों व अधिकारियों का आभार जताया और राज्यसभा की कार्यवाही के प्रचार-प्रसार में सहयोग करने के लिए मीडिया को धन्यवाद दिया।उन्होंने कहा, कि ‘आइए हम अपने राष्ट्र की गरिमा के साथ सेवा करने के लिए नई प्रतिबद्धता के साथ लौटें।’’ इसके बाद उन्होंने सदन की कार्यवाही अनिश्चिकाल के लिए स्थगित कर दी।

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