महाराष्ट्र डेस्क : औरंगजेब की कब्र को लेकर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। बीजेपी और हिंदू संगठनों ने औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग है। खासकर महाराष्ट्र में यह विवाद बहुत बढ़ गया है, और नागपुर में हुई हिंसा इसका ताजा उदाहरण है। लोग इस मुद्दे पर सवाल उठा रहे हैं कि औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग क्यों उठ रही है और क्या यह महाराष्ट्र सरकार के लिए संभव है? आइए, इस रिपोर्ट में जानते हैं कि औरंगजेब की कब्र का इतिहास क्या है और इसे लेकर सियासी संग्राम क्यों छिड़ गया है। आइए जानते है इस खबर को विस्तार से…
क्यों महाराष्ट्र में हुआ विवाद?
आपको बता दें कि यह विवाद विक्की कौशल स्टारर फिल्म “छावा” की रिलीज के बाद उभरा, जिसमें संभाजी महाराज की कहानी को दर्शाया गया था। फिल्म के क्लाइमैक्स में कुछ ऐसे दृश्य थे, जिन्होंने दर्शकों को झकझोर दिया। इसके बाद, 2 मार्च को सपा नेता अबू आजमी ने औरंगजेब को महान बताया, जिससे महाराष्ट्र में विवाद शुरू हो गया। इसके बाद हिंदू संगठनों ने औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग की, जिससे विवाद और बढ़ गया।
क्या BJP सरकार औरंगजेब की कब्र हटा सकती है?
हालांकि, बीजेपी और अन्य संगठनों की औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग है, लेकिन यह कानूनी रूप से आसान नहीं होगा। आपको बता दें कि 11 दिसंबर 1951 को औरंगजेब की कब्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित कर लिया गया था। 1958 में इसे राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सूची में भी शामिल किया गया। ऐसे में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की संरक्षित इमारतों को तोड़ना गैरकानूनी है। 1973 में इसे वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर दिया था। अगर सरकार इस कब्र को हटाना चाहती है, तो उसे यह साबित करना होगा कि यह वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं है, जो एक बड़ी कानूनी चुनौती होगी।
औरंगजेब की कब्र का इतिहास क्या है?
दरअसल, मुगल साम्राज्य के छठे सम्राट औरंगजेब की मृत्यु 1707 में हुई थी। उसकी मृत्यु के बाद, उसे महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर (अब खुल्दाबाद) में दफनाया गया। दिलचस्प बात यह है कि औरंगजेब ने अपने कुछ पैसे टोपी सिलकर और कुरान लिखकर कमाए थे, और उन्हीं पैसों से उसकी कब्र बनाई गई थी। कब्र को अंग्रेजी हुकूमत के दौरान, विशेष रूप से लॉर्ड कर्जन ने संगमरमर से सजवाया था, जो कि बाद में ऐतिहासिक महत्व रखता है।
औरंगजेब की कब्र पर क्यों शुरू हुई राजनीति?
वहीं अब बीजेपी और शिवसेना (शिंदे गुट) ने औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग की है, जबकि कांग्रेस और एनसीपी (शरद गुट) ने इसका विरोध किया है। इस मुद्दे पर सियासत और तात्कालिक नेताओं के बयानों ने माहौल और गरम किया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने इसका जिम्मेदार अबू आजमी को ठहराया, जिन्होंने औरंगजेब की तारीफ करते हुए इस विवाद को और बढ़ाया। वहीं, नीतीश राणे का कहना है कि “अगर हमने बाबरी मस्जिद के समय नहीं सोचा, तो अब क्यों सोचना?”
क्या बाबरी मस्जिद जैसा होगा अंजाम?
कुछ संगठनों का कहना है कि अगर सरकार ने औरंगजेब की कब्र नहीं हटाई, तो उसका अंजाम बाबरी मस्जिद जैसा हो सकता है। श्री कृष्ण जन्मभूमि संघर्ष न्यास ने इस पर बयान जारी करते हुए कहा है कि जो कोई भी औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर चलाएगा, उसे 21 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा। हिंदू संगठनों का कहना है कि यदि किसी को कब्र की जरूरत हो, तो इसे पाकिस्तान ले जाया जाए। बता दें कि औरंगजेब की कब्र को लेकर मचा विवाद अब सियासी संग्राम का रूप ले चुका है। इस मुद्दे ने न केवल महाराष्ट्र में बल्कि पूरे देश में बहस छेड़ दी है। हालांकि, यह एक संवेदनशील मुद्दा है और इस पर कोई भी निर्णय लेने से पहले कानून और संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करना जरूरी होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में इस मुद्दे का क्या हल निकाला जाएगा।