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जानिए कौन थे मेवाड़ के शासक राणा सांगा… किस बात को लेकर हो रहा विवाद

नेशनल डेस्क : 21 मार्च को समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा राणा सांगा के बारे में की गई विवादित टिप्पणी ने काफी विवाद खड़ा किया। उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि राणा सांगा ने बाबर को निमंत्रण दिया था, और इसे एक ऐतिहासिक तथ्य बताया। इस बयान को लेकर कई पक्षों से.

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नेशनल डेस्क : 21 मार्च को समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा राणा सांगा के बारे में की गई विवादित टिप्पणी ने काफी विवाद खड़ा किया। उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि राणा सांगा ने बाबर को निमंत्रण दिया था, और इसे एक ऐतिहासिक तथ्य बताया। इस बयान को लेकर कई पक्षों से तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। हालांकि, बाद में उन्होंने यह भी कहा कि उनका इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं था और भारत के मुसलमानों के डीएनए में बाबर की भूमिका को लेकर भी टिप्पणी की। ऐसे में आइए जानते है मेवाड़ के शासक राणा सांगा के बारे में विस्तार से…

एक महान और वीर शासक थे राणा सांगा …

आपको बता दें कि राणा सांगा मेवाड़ के एक महान और वीर शासक थे, जिनका असली नाम संग्राम सिंह था। वे 16वीं सदी के दौरान मेवाड़ (जो आज के राजस्थान का हिस्सा है) के शासक रहे और उनका शासन 1509 से 1528 तक था। राणा सांगा का जीवन और उनका संघर्ष भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। राणा सांगा का जन्म 1484 में मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ किले में हुआ था। वे राणा कुम्भा के पोते और राणा रतन सिंह के बेटे थे। उनके परिवार का इतिहास वीरता और राजपूतों की युद्ध क्षमता के लिए प्रसिद्ध था। राणा सांगा ने बहुत छोटी उम्र से ही युद्ध कला में निपुणता हासिल करना शुरू कर दिया था।

राणा सांगा का शासन

राणा सांगा के शासन में मेवाड़ एक शक्तिशाली राज्य बन गया था। उनका शासनकाल युद्धों, संघर्षों और वीरता से भरा हुआ था। उन्होंने मेवाड़ की सीमाओं को बढ़ाया और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कई लड़ाइयाँ लड़ीं। उनका मुख्य उद्देश्य राजपूतों के गौरव और स्वतंत्रता को बनाए रखना था।

राणा सांगा की प्रमुख लड़ाइयाँ

  1. गुज़री की लड़ाई (1517): राणा सांगा ने मारवाड़ (जो अब जोधपुर का हिस्सा है) के शासक राव मालदेव से युद्ध किया था। इस युद्ध में राणा सांगा ने विजय प्राप्त की और मारवाड़ को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया।
  2. पानीपत की लड़ाई (1527): राणा सांगा ने बाबर के खिलाफ भी संघर्ष किया। बाबर, जो कि दिल्ली के सुलतान थे, राणा सांगा से युद्ध करना चाहता था। राणा सांगा ने बाबर के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन तैयार किया था, जिसमें राजपूत, अफगान और अन्य स्थानीय शासकों को शामिल किया गया था। पानीपत की लड़ाई में बाबर की सेना ने जीत हासिल की, लेकिन राणा सांगा की वीरता और साहस को पूरे भारत में सराहा गया।

राणा सांगा की वीरता और गुण

राणा सांगा को उनकी वीरता, साहस, और पराक्रम के लिए जाना जाता है। वे हमेशा अपने राज्य की रक्षा के लिए संघर्ष करते रहे और कभी भी अपनी मातृभूमि को पराधीन नहीं होने दिया। उन्होंने अपने जीवन में कई युद्धों में हिस्सा लिया और अपनी शक्ति और कूटनीति से दुश्मनों को हराया।

राणा सांगा का अंतिम समय

1528 में राणा सांगा की तबियत खराब हो गई और उन्होंने 44 वर्ष की आयु में राणा सांगा का निधन हो गया। उनके बाद मेवाड़ का शासन उनके पुत्र राणा उदय सिंह के हाथों में आया, जिन्होंने चित्तौड़गढ़ किला बचाने के लिए संघर्ष किया और बाद में उनके बेटे राणा प्रताप ने वीरता से इतिहास रचा। राणा सांगा का नाम भारतीय इतिहास में हमेशा सम्मानित रहेगा। वे न केवल एक महान शासक थे, बल्कि एक साहसी योद्धा भी थे। उनके शासनकाल में मेवाड़ ने अपने गौरवपूर्ण इतिहास को बनाए रखा। उनकी वीरता और संघर्ष आज भी लोगों को प्रेरित करता है।

रामजी लाल सुमन का बयान

रामजी लाल सुमन ने राज्यसभा में कहा, “बाबर राणा सांगा के निमंत्रण पर भारत आया था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है।” इसके बाद उन्होंने यह भी कहा कि “भारत के मुसलमान मुहम्मद साहब (पैगंबर मुहम्मद) को अपना आदर्श मानते हैं और सूफी परंपरा का पालन करते हैं।” उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं था। रामजी लाल सुमन का यह बयान बहुत ही विवादास्पद था क्योंकि राणा सांगा को भारतीय इतिहास में एक वीर और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है। ऐसे में यह आरोप लगाना कि वह बाबर के निमंत्रण पर भारत आए थे, इतिहास को लेकर एक नई बहस को जन्म देता है। उनके इस बयान के बाद राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर विरोध बढ़ गया है।

राजपूत समाज द्वारा आपत्ति जताई…

विशेष रूप से राजपूत समाज और इतिहासकारों द्वारा इस टिप्पणी पर आपत्ति जताई गई है, क्योंकि यह राणा सांगा की वीरता और संघर्ष को कमजोर करने जैसा माना जा रहा है। राणा सांगा के बारे में ऐसी टिप्पणियों को एक ऐतिहासिक मिथ्या और तर्कहीन माना जा रहा है, क्योंकि ऐतिहासिक प्रमाण यह बताते हैं कि राणा सांगा बाबर के खिलाफ लड़ने वाले प्रमुख शासकों में से थे, न कि उनके सहयोगी।

समाजवादी पार्टी का रुख

रामजी लाल सुमन के बयान के बाद पार्टी के भीतर भी इस पर प्रतिक्रिया हुई। समाजवादी पार्टी के नेतृत्व ने उनके बयान से दूरी बनाई और यह स्पष्ट किया कि पार्टी का राणा सांगा से संबंधित इस तरह के बयान से कोई संबंध नहीं है। यह विवाद एक बार फिर से भारतीय इतिहास की विविधता और विभिन्न दृष्टिकोणों पर बहस को हवा दे रहा है। जबकि राणा सांगा को एक वीरता और सम्मान के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, रामजी लाल सुमन की टिप्पणी ने एक नई ऐतिहासिक चर्चा को जन्म दिया है, जो अब तक विवादित बनी हुई है।

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