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अर्थशास्त्रियों की राय, रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की और वृद्धि कर सकता है Reserve Bank

मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अगले सप्ताह चालू वित्त वर्ष की पहली द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में प्रमुख नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की और बढ़ोतरी कर सकता है। हालांकि, 2023-24 की तीसरी तिमाही के अंत में दरों में कमी करने का निर्णय लिया जा सकता है। एक्सिस बैंक के अर्थशास्त्रियों ने बुधवार को यह कहा। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक तीन से छह अप्रैल तक होगी। बैठक के नतीजों की घोषणा छह अप्रैल को होगी। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, आरबीआई के अधिकारियों ने मंगलवार को अर्थशास्त्रियों से मुलाकात की जिन्होंने केंद्रीय बैंक को दरों में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि करने का सुझाव दिया। आरबीआई ने मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए मई, 2022 से नीतिगत दर रेपो में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि की है।

एक्सिस बैंक में मुख्य अर्थशास्त्री सौगात भट्टाचार्य ने कहा कि दरों में वृद्धि करने से अड़ियल मूल मुद्रास्फीति को काबू में लाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, ‘‘मेरा अनुमान है कि दरें और 0.25 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती हैं।’’ भट्टाचार्य ने कहा कि वृद्धि में नरमी नजर आ रही है, इसके अलावा मुद्रास्फीति के कुछ घटने से मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) वित्त वर्ष 2023-24 की तीसरी तिमाही के अंत तक दरों में कटौती कर सकती है। ‘उदार रुख को छोड़ने’ के आरबीआई के रुझान में परिवर्तन करना अभी जल्दबाजी होगा, यह कहते हुए उन्होंने अनुमान जताया कि केंद्रीय बैंक जून समीक्षा में अपने रूख को ‘तटस्थ’ कर सकता है।

उन्होंने कहा कि वृद्धि में नरमी के संकेत मिल रहे हैं जिससे 2023-24 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि छह प्रतिशत रह सकती है जो रिजर्व बैंक के 6.4 प्रतिशत के अनुमान से कहीं कम है। उन्होंने आगे कहा कि 2023-24 की तीसरी तिमाही के अंत में जब वृद्धि में नरमी और स्पष्ट हो जाएगी, मुद्रास्फीति घटकर 5-5.50 प्रतिशत पर आ जाएगी तब आरबीआई दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है। इसके नतीजतन 2023-24 के अंत में प्रमुख नीतिगत दर 6.50 प्रतिशत पर होगी, यह वही स्तर होगा जो वित्त वर्ष के आरंभ में था। भट्टाचार्य ने कहा कि वैश्विक स्तर पर समूचे आर्थिक माहौल में अनिश्चितताएं बनी हुई हैं और अर्थव्यवस्था के इतिहास में इस तरह का दौर पहले कभी नहीं देखा गया। हालांकि अच्छी बात यह है कि अमेरिका और यूरोप में सभी प्रमुख आर्थिक संकेतकों में सुधार हो रहा है।

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