बेंगलुरु: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बुधवार को कहा कि भारत अगले दो दशकों में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अपनी हिस्सेदारी 2% से बढ़ाकर कम से कम 10 प्रतिशत करने की तैयारी में है। सोमनाथ ने कहा कि इस दौरान देश अंतरिक्ष उद्योग की सम्पूर्ण मूल्य श्रृंखला का पूरी क्षमता के साथ दोहन करना चाहेगा। उन्होंने यहां बेंगलुरु टेक समिट 2024 को संबोधित करते हुए कहा कि अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी के लिए भारत का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तीन प्रमुख क्षेत्रों- प्रारंभिक चरण (उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण), मध्यम चरण (बुनियादी ढांचा और अनुप्रयोग), और उपभोक्ता बाजार के चरण (डेटा-संचालित समाधान) पर केंद्रित होगा।
इसरो के अध्यक्ष ने कहा, “विशेष रूप से उपभोक्ता बाजार से जुड़ी गतिविधियों में बहुत संभावनाएं हैं। कौशल विकास में निवेश करके, हम अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के सभी पहलुओं में प्रगति को उत्प्रेरित कर सकते हैं।” उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष नीति 2023 और इस क्षेत्र में चल रहे सुधार इन लक्ष्यों की दिशा में महत्वपूर्ण हैं। नयर नीति में नवाचार और विकास को आगे बढ़ाने में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) और निजी संस्थाओं की भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
इसरो की उम्मीद है कि इस क्षेत्र में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) संबंधी नियमों से वैश्विक निवेश आकर्षित होने की उम्मीद है, जिससे भारत अंतरिक्ष उद्योग में अग्रणी के रूप में स्थापित होगा। इसरो अध्यक्ष ने सरकार के अंतरिक्ष मिशन 2047 को भारत में अंतरिक्ष अन्वेषण को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक दूरदर्शी पहल बताया। सोमनाथ ने भारत की अंतरिक्ष रणनीति में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के महत्व पर जोर दिया, जिसमें नासा के साथ निसार उपग्रह, जापान के साथ लूपेक्स मिशन और जी20 के नेतृत्व में विभिन्न जलवायु निगरानी पहल जैसी उच्च-प्रोफ़ाइल परियोजनाओं का हवाला दिया गया।