Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

विदेशी बाजारों में कमजोरी के रुख से बीते सप्ताह सभी खाद्य तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट

 

नई दिल्ली: विदेशों में खाद्य तेलों के दाम में आई गिरावट के बीच बीते सप्ताह देश के तेल-तिलहन बाजारों में लगभग सभी खाद्य तेल-तिलहनों के थोक भाव नीचे आ गए। बाजार सूत्रों ने कहा कि पिछले सप्ताह विदेशी बाजारों में मांग कमजोर होने से मंदी है और पहले जिस पाम तेल का दाम 940 डॉलर प्रति टन हुआ करता था वह घटकर अब 880 से 885 डालर रह गया है। इसी प्रकार सोयाबीन तेल का दाम 1,030 डॉलर से घटकर 970 डॉलर प्रति टन रह गया है।

खाद्य तेलों के सबसे बडे आयातक देश भारत की मांग पहले के मुकाबले घटी है और इस कारण विदेशों में कीमतों पर दबाव है। भारत में लगभग पिछले दो महीने से खाद्य तेलों के लदे जहाज कांडला बंदरगाह पर खडे हैं और उसमें से खाद्य तेल खाली नहीं किया जा सका है। इन खाद्य तेलों से लदे जहाजों के लिए आयातकों को विदेशी मुद्रा में शुल्क (डेमरेज शुल्क) भी अदा करना पड रहा है।

सूत्रों ने कहा कि इसके अलावा आयातक अपने बैंक का ऋण साख पत्र (लेटर आफ क्रेडिट या एलसी) चलाते रहने के लिए आयातित खाद्य तेलों को लागत से कम कीमत पर बंदरगाह पर बेच रहे हैं जिससे बैंकों को भी अपने कर्ज की वापसी के संदर्भ में दिक्कत आ सकती है। इन सब कवायद का मतलब था कि खाद्य तेलों के दाम सस्ते हों। हालांकि, थोक में जरूर कीमतों में काफी गिरावट आई है, पर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) के जरूरत से कहीं ऊंचा होने के कारण उपभेक्ताओं को यही तेल महंगे दाम पर खरीदना पड़ रहा है। खाद्य तेल संगठनों और सरकार को इस मसले पर ध्यान देकर उपचारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है।

सूत्रों ने कहा कि क्योंकि थोक में तो दाम में भारी गिरावट आई है, पर ज्यादा एमआरपी की वजह से उपभेक्ताओं को खाद्य तेल 30 से 40 रुपये ऊंचे दाम पर खरीदना पड़ रहा है। उपभेक्ताओं को यदि खाद्य तेल सस्ते में उपलब्ध नहीं हुआ तो भारी मात्रा में सस्ते आयात का कोई मतलब नहीं रह जायेगा। इसलिए सरकार को इस दिशा में कुछ कदम उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति में सोयाबीन, सूरजमुखी और पामोलीन जैसे सभी तेल उपभेक्ताओं को 100 रुपये लीटर से कम दाम पर मिलने चाहिए।

सूत्रों ने कहा कि जो मौजूदा परिदृश्य है, उसको देखते हुए घरेलू तेल-तिलहन उद्योग का भविष्य अच्छा नजर नहीं आता है, लेकिन इसका अहसास अगले चार-पांच साल में होगा, जब देशी तेल-तिलहन के दाम आयातित खाद्य तेलों से लगभग दोगुने बैठेंगे। तेल आयातक बैंकों से कर्ज ले लेकर आयात के बाद अपनी लागत से तीन से चार रुपये किलो नीचे दाम पर तेल बेच रहे हैं। ऐसे में तेल उद्योग और आयातकों का अस्तित्व संकट में आने का खतरा है तथा तेल-तिलहन कारोबर पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पूरा वर्चस्व कायम होने का डर है।

उन्होंने कहा कि खुले बाजार में सरसों अपने न्यूनतम समर्थन मूल्य ‘एमएसपी’ से 10 से 12 प्रतिशत नीचे बिक रहा है जबकि देशी सूरजमुखी एमएसपी से 20 से 30 प्रतिशत नीचे है। इस पूरी स्थिति में तेल कारोबार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ‘बिचौलियों’ को काफी फायदा हो रहा है। सूत्रों ने कहा कि बाजार में ऐसी खबर है कि सहकारी संस्था नेफेड सरसों की बिकवाली के लिए निविदा मंगाने वाली है।

इस खबर के बीच सरसों तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट रही जिनके भाव एमएसपी से काफी कम हैं। सरसों तेल ग्राहकों को ज्यादा से ज्यादा 110 से 115 रुपये लीटर मिलना चाहिये पर इसकी कीमत 140 से 150 रुपये लीटर है। उन्होंने कहा कि इस सस्ते आयात का किसी को फायदा नहीं मिल रहा है। विदेशों में खाद्य तेलों का बाजार मंदा है और देश में आयातित खाद्य तेलों की भरमार है।

पिछले साल के औसत आयात की तुलना में इस बार कहीं अधिक आयात हुआ है। ऐसे में लगभग दोगुनी लागत वाले देशी तेल-तिलहनों का खपना दूभर हो गया है। ज्यादातर किसान तिलहन खेती की जगह मोटे अनाज या अन्य चीजों की खेती की ओर अपना रुख करते दिख रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि आबादी बढ़ने के साथ देश में खाद्य तेलों की औसत मांग हर वर्ष लगभग 10 प्रतिशत बढ़ रही है।

ऐसे में देशी तेल-तिलहन की खेती और उत्पादन में वृद्धि होनी चाहिये थी लेकिन सरकारी आंकड़ों से पता लगता है कि मूंगफली, कपास (बिनौला), सूरजमुखी आदि तिलहन खेती का रकबा घटा है। इस बार जो सरसों का हाल हुआ है, उसको देखकर लगता है कि कहीं इसका हाल भी सूरजमुखी वाला न हो जाये, जो लगभग गायब हो रहा है।

Exit mobile version