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देशी तेल तिलहन में सुधार, आयातित तेल कीमतों में गिरावट

नयी दिल्ली: अच्छे माल की उपलब्धता की कमी और साधारण मांग के कारण दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शुक्रवार को देशी तेल तिलहनों के भाव में सुधार दिखा जबकि आयात ज्यादा होने से सोयाबीन तेल, कच्चा पामतेल (सीपीओ) और पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट आई। देशी तेल-तिलहन में सरसों एवं मूंगफली के अलावा सोयाबीन तिलहन और बिनौला तेल शामिल हैं। शिकॉगो एक्सचेंज में फिलहाल सुधार का रुख है जबकि मलेशिया एक्सचेंज में 0.3 प्रतिशत की गिरावट है।

बाजार सूत्रों ने कहा कि सूखे और बेहतर दाने वाले सरसों की कमी होने, ब्रांडेड कंपनियों की कच्ची घानी तेल की मांग बढऩे तथा पक्की घानी के मुकाबले कच्ची घानी तेल की कीमत का अंतर पहले के एक रुपये किलो से बढक़र लगभग पांच रुपये किलो होने की वजह से सरसों तेल तिलहन में सुधार दिखा। जबकि मूंगफली की उपलब्धता कम रहने के साथ इसकी मांग होने से मूंगफली तेल तिलहन कीमतों में भी सुधार आया। मूंगफली तेल का विकल्प बिनौला तेल को माना जाता है। मूंगफली की कमी के बीच बिनौला की अच्छी गुणवत्ता के माल की कमी होने और मांग बढऩे से बिनौला तेल कीमतों में भी सुधार आया। त्योहारों का मौसम नजदीक होने के साथ देशी तेल तिलहन की मांग आगे और बढऩे की उम्मीद है। डी-आयल्ड केक (डीओसी) की मांग के कारण सोयाबीन तिलहन कीमतों में भी सुधार दिखा।

दूसरी ओर, आयातित तेलों के अधिक आयात के कारण सोयाबीन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) और पामोलीन तेल कीमतों में नरमी देखी गई। इन तेलों के आयात पर जो लागत आती है उससे कहीं कम कीमत पर बंदरगाह पर यह तेल बिकते हैं। इन खाद्यतेलों का इतना अधिक आयात हो रखा है कि इनमें आपस में ही प्रतिस्पर्धा हो रही है। आयात बेपड़ता बैठने की वजह से सीपीओ से पामोलीन बनाने में तीन रुपये किलो, सोयाबीन तेल मे 3-4 रुपये किलो, सूरजमुखी तेल में 2-3 रुपये किलो और पामोलीन में लगभग एक रुपये किलो का नुकसान है यानी लागत के मुकाबले बंदरगाह पर बिक्री में यह नुकसान हो रहा है।

 

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