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यूरोपीय संघ के कॉर्बन कर से निपटने के लिए ‘जवाबी कार्रवाई’ करे भारत: जीटीआरआई

नयी दिल्ली: यूरोपीय संघ द्वारा कुछ क्षेत्रों पर कॉर्बन कर लगाने के फैसले को देखते हुए भारत को भी सकारात्मक तरीके से उसके (यूरोपीय संघ के) कुछ उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगाने पर विचार करना चाहिए। शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है। यूरोपीय संघ (ईयू) ने जनवरी, 2026 से कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) लागू करने का फैसला किया है।

हालांकि, इसका अनुपालन इसी साल अक्टूबर से शुरू हो जाएगा। इस्पात, एल्युमीनियम, सीमेंट और उर्वरक जैसे कार्बन-गहन उत्पादों का निर्यात करने वाले व्यवसायों अगले महीने से यूरोपीय संघ के अधिकारियों से विस्तृत उत्पादन आंकड़ा साझा करना होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि जवाबी उपाय तेजी से कार्यान्वयन सहित कई अन्य लाभ प्रदान करते हैं। रिपोर्ट कहती है कि भारत, यूरोपीय संघ या किसी अन्य भागीदार देश की कार्रवाई को सटीक तरीके से प्रतिबिंबित करने के लिए उत्पाद सूची और शुल्क स्तर को समायोजित कर सकता है।

जीटीआरआई के सह-संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘इसके उपाय के रूप में एक सोच-विचार वाली जवाबी कार्रवाई (सीआरएम) का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। हमने पहले भी ऐसा किया है।’’ मार्च, 2018 में जब अमेरिका ने भारत से इस्पात और एल्युमीनियम के आयात शुल्क लगाया था, तो भारत ने 29 विशिष्ट अमेरिकी उत्पादों पर इसी अनुपात में शुल्क बढ़ाकर जवाब दिया था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सीबीएएम उन कई योजनाओं में से एक है, जो भारतीय निर्यात को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। यूरोपीय संघ ने वनों की कटाई विनियमन, विदेशी सब्सिडी विनियमन (एफएसआर) और आपूर्ति श्रृंखला जांच-परख अधिनियम (एससीडीडीए) भी पेश किया है। जवाबी कार्रवाई के जरिये हम भारतीय निर्यात पर इन योजनाओं के असर को कम कर सकते हैं।

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