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खाद्यान्न की बढ़ती मांग का समाधान हो सकता है मोटा अनाज: S. Jaishankar

विएना: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि चावल और गेहूं की तुलना में मोटे अनाज (बाजरा आदि) कहीं अधिक स्वास्थ्यवर्धक हैं और ऐसे में जबकि वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न या अनाज की कमी को लेकर चिंता है इनका महत्व और बढ़ जाता है। रविवार को ऑस्ट्रिया की राजधानी में प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत मोटे अनाज उगा सकता है जो दुनियाभर में बढ़ती खाद्यान्न की मांग का एक समाधान है।

सरकार ने एक जनवरी को घोषणा की कि वह देशभर में मोटा अनाज केंद्रित प्रचार गतिविधियों की एक श्रृंखला तैयार कर रही है, क्योंकि अंतररष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (आईवाईएम) शुरू हो रहा है। विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘हम रोज चावल या गेहूं जैसा जो अनाज खाते हैं उनकी तुलना में मोटे अनाज अधिक स्वास्थ्यवर्धक है। यह वह भेजन है जो हमारे समाज में सबसे अधिक प्रचलित था, लेकिन धीरे-धीरे यह कम होता गया। इसमें बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है और यह कॉर्बन अनुकूल है।

उन्होंने कहा, आज ऐसी दुनिया में जहां भेजन की कमी के बारे में चिंता है, मोटा अनाज अलग मूल्य पेश करता है। वास्तव में आज भारत में उगाए जाने वाले लगभग हर पांच किलो गेहूं के लिए एक किलो मोटा अनाज उगाया और उपभोग किया जाता है।’’ सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी इसके उपभोग के प्रमाण है। आज दुनिया के 130 देशों में इसकी खेती हो रही है और एशिया और अफ्रीका के करीब 50 करोड़ लोगों का यह परंपरागत भेजन है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम वास्तव में इसे विकसित कर सकते हैं। यह हमारी बढ़ती खाद्य मांग का एक समाधान है। सिर्फ हम ही नहीं, बल्कि अफ्रीका, एशिया और पश्चिम एशिया के कुछ हिस्सों के लिए भी यह महत्वपूर्ण है।’’ जयशंकर अपनी दो देशों की यात्रा के दूसरे चरण में साइप्रस से ऑस्ट्रिया पहुंचे हैं। भारत में मोटा अनाज मुख्य रूप से खरीफ की फसल है, जिसमें अन्य समान फसलों की तुलना में कम पानी और कृषि आदानों की जरूरत होती है। यह पूरी दुनिया में लोगों को आजीविका देने के अलावा, किसानों की आय बढ़ाने और खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की क्षमता रखता है।

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