Shilpi-Gautam Rape Murder Case ; बिहार डेस्क : बिहार, भारत का एक ऐसा राज्य है जिसका इतिहास अत्यंत महत्वपूर्ण और गौरवमयी रहा है। यहां की सांस्कृतिक धरोहर, शिक्षा, और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को कभी भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन, अफसोस की बात यह है कि वर्तमान में इसे एक पिछड़े हुए राज्य के रूप में देखा जाता है। इसके बावजूद, अगर हम बिहार की राजनीति की बात करें तो पिछले 30 वर्षों से लालू यादव और नीतीश कुमार का दबदबा बना हुआ है। लालू यादव के शासनकाल को विशेष रूप से “जंगलराज” कहा जाता है, और यह नाम उनकी सरकार के दौरान हुए अपराधों और अराजकता के माहौल को दर्शाता है। इस खबर में हम “जंगलराज” की उस घातक घटना के बारे में बात करेंगे, जिसने बिहार की राजनीति और प्रशासन को एक नया मोड़ दिया।
लालू यादव के शासन की काली यादें
लालू यादव ने 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली थी, और उनके शासनकाल में एक तरह का अराजकता का माहौल बना था। यह वह समय था जब बिहार में अपराधियों का बोलबाला था, और सरकारी मशीनरी लगभग नाकाम हो गई थी। बिहार में अपराधी वर्ग, गुंडे और माफिया खुलकर शासन करते थे और प्रशासन का कामकाज सिर्फ दिखावा रह गया था। लालू यादव के शासन के दौरान कई हिंसक घटनाएं, अपराधिक वारदातें और भ्रष्टाचार की खबरें सुर्खियों में थीं। यही कारण है कि बीजेपी और अन्य विपक्षी पार्टियां उनके शासन को “जंगलराज” के रूप में याद करती हैं। इस दौर में अपराधियों का डर और भ्रष्टाचार के मामले इतने बढ़ गए थे कि सामान्य जनता को भी खुद को सुरक्षित महसूस करना मुश्किल हो गया था।
बीजेपी और जंगलराज का आरोप
बीजेपी और अन्य राजनीतिक दलों द्वारा लालू यादव के शासनकाल को “जंगलराज” कहने के पीछे मुख्य कारण यह था कि उनके शासन में कानून व्यवस्था की स्थिति बेहद खराब हो गई थी। अपराधियों का शासन और सरकारी तंत्र का कमजोर होना ही इस नाम के कारण बने। इस दौरान पुलिस और प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारियां निभाने में दिक्कतें आती थीं, क्योंकि अपराधी वर्ग सत्ता में बैठे लोगों के करीबी थे। आज हम जंगलराज के दौरान हुए एक बेहद दर्दनाक घटना के बारे में जानेंगे । बता दें कि इस समय बिहार की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थी। आइए जानते है एक दर्दनाक खबर को ….
गौतम और शिल्पी की कहानी
हमारे समाज में अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं, जो कई सालों तक लोगों के ज़हन में बने रहते हैं। एक ऐसा ही मामला था बिहार का चर्चित शिल्पी-गौतम मर्डर केस, जिसे 25 साल पहले अंजाम दिया गया था। यह मामला न केवल रहस्यमय था, बल्कि इसमें कई बड़े सवाल भी उठे थे। दरअसल, 1999 में बिहार की राजधानी पटना में शिल्पी जैन नाम की एक लड़की रहती थी। वह बहुत सुंदर और स्टाइलिश थी, और उसने मिस पटना का ताज भी जीता था। शिल्पी का बॉयफ्रेंड गौतम सिंह था, जो एक बड़े परिवार से ताल्लुक रखता था। एक दिन शिल्पी को गौतम के दोस्त ने अपने साथ इंस्टिट्यूट छोड़ने के बहाने लिया। लेकिन, उसे गंतव्य पर न जाकर पटना के बाहरी इलाके स्थित वाल्मी गेस्ट हाउस में ले गया।
शिल्पी को बचाने के लिए दौड़ा गौतम
जब शिल्पी को गेस्ट हाउस में ले जाया गया, तो उसने पूछा कि वह वहां क्यों आए हैं। दोस्त ने बताया कि गौतम भी वहीं है। यह सुनकर शिल्पी को कोई शंका नहीं हुई और वह शांति से वहां पहुंच गई। लेकिन, गौतम को पता चलने पर वह भी भागता हुआ गेस्ट हाउस आया और पाया कि शिल्पी के साथ कुछ गलत होने जा रहा था। वहां मौजूद कई लोग शिल्पी की अस्मत लूटने की कोशिश कर रहे थे, जिसे गौतम ने रोकने की कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहा।
शिल्पी और गौतम की हत्या
बताया जाता है कि शिल्पी के साथ वहां सामूहिक बलात्कार किया गया और फिर उन्हें गला दबाकर हत्या कर दी गई। अगले दिन, शिल्पी के परिवारवालों को जब उसकी कोई खबर नहीं मिली, तो उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। लेकिन, पुलिस को अगले दिन तक कोई सुराग नहीं मिला। वहीं 3 जुलाई 1999 को, पटना के गांधी मैदान इलाके के एक बंगले में पुलिस को एक कार से दो लाशें मिलीं। ये लाशें गौतम सिंह और शिल्पी जैन की थीं। दोनों के शरीर पर कपड़े नहीं थे, और गौतम की शिनाख्त उसके परिवार से हुई, जबकि शिल्पी की पहचान उसके परिवार ने की। गौतम पटना में अकेले रहता था, क्योंकि उसके पिता विदेश में रहते थे।
हत्या या आत्महत्या?
इस घटना के बाद सवाल उठे कि क्या यह आत्महत्या थी या किसी साजिश का शिकार हुए थे दोनों। पुलिस ने अपनी जांच में प्रेमी-प्रेमिका की आत्महत्या की संभावना जताई। लेकिन जैसे-जैसे मामले में सत्ता के बड़े नाम जुड़े, यह केस और जटिल हो गया। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भाई साधु यादव का नाम सामने आने के बाद मामला और गरम हो गया।
पुलिस की लापरवाही
पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजने से पहले उन पर कोई खास ध्यान नहीं दिया। पुलिस ने लाशों को बिना फोरेंसिक जांच और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के खुदकुशी का मामला करार दे दिया। इतना ही नहीं, दोनों लाशों का अंतिम संस्कार रात में ही कर दिया गया, जब गौतम के परिवारवाले तक वहां मौजूद नहीं थे।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने पूरी कहानी बदल दी। रिपोर्ट में यह सामने आया कि शिल्पी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। उसके शरीर पर जूतों के निशान थे और कई लोगों के वीर्य के दाग पाए गए थे। इसके बाद यह मामला एक सुसाइड से कहीं बड़ा और गंभीर बन गया।
साधु यादव का नाम सामने आया
रिपोर्ट के बाद साधु यादव का नाम सीधे तौर पर इस हत्या में शामिल पाया गया। इसने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर राबड़ी देवी पर दबाव डालना शुरू कर दिया, और सरकार को घेरने की कोशिश की। इस मामले में दो सांसदों और कुछ विधायकों के नाम भी सामने आए।
CBI जांच और निष्कर्ष
मामला बढ़ने पर राबड़ी देवी की सरकार ने सीबीआई को मामले की जांच सौंप दी। सीबीआई ने कई महत्वपूर्ण आरोपियों से पूछताछ की, लेकिन चार साल तक चली जांच के बावजूद कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाए। अंत में, 2003 में सीबीआई ने रिपोर्ट दी और मामले को आत्महत्या का केस करार दिया।
शिल्पी के भाई का अपहरण
सीबीआई की रिपोर्ट के बाद भी शिल्पी के परिवार वाले संतुष्ट नहीं थे। शिल्पी का भाई प्रशांत इस केस को फिर से खोले जाने की मांग करता रहा। 2006 में उसका अपहरण हो गया, लेकिन कुछ समय बाद वह अपने घर वापस लौट आया। हालांकि, इस अपहरण का कारण और कर्ता कोई भी नहीं जान सका। शिल्पी और गौतम की हत्या का मामला आज भी एक रहस्य बना हुआ है। इस मामले में कई राजनीतिक और सामाजिक पहलू जुड़े हुए हैं, लेकिन आज तक इस रहस्यमय मौत की पूरी सच्चाई सामने नहीं आ सकी है।
लालू यादव की राजनीति और जंगलराज की छवि
लालू यादव की राजनीति ने बिहार की पहचान को दोहरे पहलुओं में बांट दिया। जहां एक ओर उन्होंने बिहार के पिछड़े इलाकों में विकास की योजनाएं चलाईं, वहीं दूसरी ओर उनके शासन में कानून और व्यवस्था की स्थिति भयावह हो गई। यही कारण है कि “जंगलराज” शब्द आज भी उनके शासनकाल के साथ जुड़ा हुआ है। इस काले अध्याय के बावजूद, लालू यादव बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे और अब भी उनके समर्थक उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में देखते हैं। वहीं, बीजेपी और अन्य विपक्षी दल उन्हें उनके शासनकाल की वजह से हमेशा आलोचना करते रहे हैं।
लालू यादव के शासनकाल को “जंगलराज” का नाम दिया गया क्योंकि उनके शासन में अपराध, भ्रष्टाचार, और अराजकता की स्थिति चरम पर पहुंच गई थी। यह शब्द उन दिनों की कड़ी आलोचना का प्रतीक बन गया। हालांकि, समय के साथ बिहार में बदलाव आया है और नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य में सुधार की कोशिशें जारी हैं, लेकिन “जंगलराज” की छवि अभी भी लोगों की यादों में ताजी है। बीजेपी द्वारा “जंगलराज” का आरोप आज भी राजनीति के मैदान में एक हथियार के रूप में इस्तेमाल होता है, और यह दर्शाता है कि लालू यादव के शासनकाल की काली यादें अब भी बिहार की राजनीति को प्रभावित करती हैं।