धर्म : धनासरी महला ४ घरु १ चउपदे ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ जो हरि सेवहि संत भगत तिन के सभि पाप निवारी ॥ हम ऊपरि किरपा करि सुआमी रखु संगति तुम जु पिआरी ॥१॥ हरि गुण कहि न सकउ बनवारी ॥ हम पापी पाथर नीरि डुबत करि किरपा पाखण हम तारी ॥ रहाउ ॥ जनम जनम के लागे बिखु मोरचा लगि संगति साध सवारी ॥ जिउ कंचनु बैसंतरि ताइओ मलु काटी कटित उतारी ॥२॥ हरि हरि जपनु जपउ दिनु राती जपि हरि हरि हरि उरि धारी ॥ हरि हरि हरि अउखधु जगि पूरा जपि हरि हरि हउमै मारी ॥३॥ हरि हरि अगम अगाधि बोधि अपर्मपर पुरख अपारी ॥ जन कउ क्रिपा करहु जगजीवन जन नानक पैज सवारी ॥४॥१॥
अर्थ: अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा प्राप्त होता है। हे प्रभु! जो तुम्हारा संत भगत तुम्हारा नाम सुमिरन करते हैं, तुम उनके पूर्व कर्मो के पाप दूर करने वाले हो। हे मालिक प्रभु! हमारे ऊपर भी मेहर कर, (हमें उस) साध सांगत मैं रख जो तुम्हे प्यारी लगती है।१। हे हरी! हे प्रभु! में तेरे गुण बयां नहीं कर सकता। हम जीव पापी हैं, पापों में डूबे रहते हैं, जैसे पत्थर पानी में डूबे रहते हैं। मेहर कर, हम पत्थरों (पत्थर दिलो) को संसार समुंदर से पार कर दो जी।रहाउ। हे भाई! जैसे सोना अग्नि में तापने से उस की सारी मैल कट जाती है, उत्तार दी जाती है, उसी प्रकार जीवों के अनेकों जन्मो के चिपके हुए पापों का जहर, पापों का जंगल संगत की सरन आ कर ख़तम हो जाता है।२।