5 नवंबर को मनाई जा रही है अहोई अष्टमी, संतान की लंबी उम्र के लिए इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा

अहोई अष्टमी व्रत अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण-पक्ष अष्टमी के दिन मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की रक्षा के लिए पूरा दिन व्रत करती हैं। शाम को दीवार पर छापा लगाकर अहोई माता की पूजा करती हैं तथा कथा सुनती हैं। अहोई माता की मूर्ति में संसार संजोया दिखाया.

अहोई अष्टमी व्रत
अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण-पक्ष अष्टमी के दिन मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की रक्षा के लिए पूरा दिन व्रत करती हैं। शाम को दीवार पर छापा लगाकर अहोई माता की पूजा करती हैं तथा कथा सुनती हैं। अहोई माता की मूर्ति में संसार संजोया दिखाया जाता है। रात को तारे को अर्घ्य देकर व्रत को खोला जाता है। यह व्रत आरोग्यता प्राप्ति एवं दीर्घजीवी संतान होने निमित्त रखा जाता है। यह व्रत स्त्रियों द्वारा रखा जाता है तथा दिनभर कुछ नहीं खाया जाता।

व्रत का महत्व
यह पर्व दीपावली के आरंभ होने की सूचना देता है जिन जातकों की संतान को शारीरिक कष्ट हो, स्वास्थ्य ठीक न रहता हो, बार-बार बीमार पड़ते हों या किसी भी कारण माता-पिता को अपनी संतान के स्वास्थ्य या आयु की चिंता बनी रहती हो, उन्हें इस पर्व पर समुचित व्रत व पूजा आदि करने पर विशेष लाभ होता है तथा संतान स्वस्थ होकर लंबी आयु प्राप्त करती है।

व्रत-विधान एवं पूजन
अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाते हैं। साथ ही सेह (स्याहू) व उसके बच्चे का चित्र भी बनाते हैं। शाम को पूजन के बाद अहोई माता की कथा सुनते हैं। फिर घर के बड़ों विशेषकर सास के पांव छूकर आशीर्वाद लेकर तारों की पूजा करके जल चढ़ाते हैं। इसके बाद जल ग्रहण करके व्रत का समापन किया जाता है।

व्रत कथा
किसी नगर में साहूकार रहता था। उसके सात पुत्र थे। एक दिन साहूकार की पत्नी खदान में से खोदकर मिट्टी लाने के लिए गई। ज्यों हो उसने मिट्टी खोदने के लिए कुदाल चलाई त्यों ही उसमें रह रहे स्याहू के बच्चे प्रहार से आहत होकर मर गए। अनजाने में ही सही परन्तु साहूकार की पत्नी को स्याहू के बच्चों के मर जाने का अत्यधिक दु:ख हुआ। अत: दुखी मन से वह घर लौट आई। दु:ख और पश्चाताप के कारण वह मिट्टी भी नहीं लाई। उधर जब स्याहू घर आई तो उसने अपने बच्चों को मृत्तावस्था में पाया। वह विलाप करने लगी।

उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि जिसने मेरे बच्चों को मारा है उसे भी बच्चों की मौत का दु:ख भुगतना पड़े। इधर स्याहू के श्राप से एक वर्ष के अंदर ही सेठानी के सातों पुत्र मर गए। एक के बाद एक सात पुत्रों की मृत्यु हो जाने के कारण सेठ-सेठानी घोर शोक में डूब गए। संतान के बिना शेष जीवन बिताना उन्हें निकृष्ट लगने लगा। शोक में डूबे पति-पत्नी ने किसी तीर्थ स्थान पर जाकर अपने प्राणों को विसर्जन करने का संकल्प कर लिया। मन में ऐसा निश्चय कर सेठसेठानी घर से पैदल ही तीर्थ की ओर चल पड़े। जब वे चलने में बिल्कुल असमर्थ हो गए तो रास्ते में ही मूर्छित होकर गिर पड़े।

उनकी इस दयनीय दशा को देखकर करुणानिधि भगवान को उन पर दया आ गई और आकाशवाणी की, ‘हे सेठ! तेरी सेठानी ने मिट्टी खोदते समय अनजाने में ही स्याहू के बच्चों को मार डाला था इसलिए तुझे भी अपने बच्चों का कष्ट सहना पड़ा। अब तुम दोनों अपने घर जाकर गाय की सेवा करो और अहोई अष्टमी आने पर विधि-विधानपूर्वक प्रेम से अहोई माता की पूजा करो। सभी जीवों पर दया भाव रखो।

किसी का अहित न करो। यदि तुम मेरे कहने के अनुसार आचरण करोगे तो तुम्हें संतान सुख प्राप्त हो जाएगा।’ इस आकाशवाणी को सुनकर सेठसेठानी को कुछ धैर्य हुआ और वे दोनों भगवती का स्मरण करते हुए अपने घर को प्रस्थान कर गए। घर पहुंचकर उन दोनों ने आकाशवाणी के अनुसार कार्य करना प्रारंभ कर दिया। इसके साथ ईर्ष्या-द्वेष की भावना से रहित होकर सभी प्राणियों पर करुणा का भाव रखना प्रारंभ कर दिया। भगवान की कृपा से सेठ-सेठानी पुन: पुत्रवान होकर सभी सुखों का भोग करने लगे और अंतकाल में स्वर्गगामी हुए।

- विज्ञापन -

Latest News