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action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114हर इंसान चाहता है कि उसके जीवन और घर परिवार में हमेशा ख़ुशी का माहौल बना रहे और सब खुश रहे। उसके लिए बहुत कुछ करते है लेकिन इतना सब कुछ करने के बाद भी घर से कलेश ख़त्म नहीं होता। चाणक्य की निति को बहुत से लोग मानते है और उसे अपने जीवन में अपनाते भी है। आज हम आपको चाणक्य निति की कुछ नीतियों के बारे में बताने जा रहे जिससे आप अपने घर में सुख शांति बनाए रखगे। आइए जानते है क्या है चाणक्य की यह निति:
सानन्दं सदनं सुताश्च सुधिय: कान्ता प्रियालापिनी
इच्छापूर्तिधनं स्वयोषितिरति: स्वाऽऽज्ञापरा: सेवका:
अतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे
साधो: संगमुपासते च संततं धन्यो गृहस्थाऽऽश्रम:..
चाणक्य कहते हैं कि जिसके बेटे और बेटिंया अच्छी बुद्धि वाले हों, पत्नी मधुर बोलने वाली हो, जिसके पास परिश्रम से कमाया धन हो, अच्छे मित्र हों, पत्नी से प्रेम हो, नौकर चाकर आज्ञाकारी हों, घर में अतिथियों का आदर सम्मान हो, ईश्वर की पूजा होती हो, घर में मीठे भोजन और मधुर पेय की व्यवस्था हो, हमेशा सज्जन व्यक्तियों की संगति हो ऐसा घर सुखी है. यह प्रशंसा के योग्य है. आचार्य चाणक्य एक आदर्श गृह के बारे में बताते हैं कि कैसा होना चाहिए-
आर्तेषु विप्रेषु दयावन्तिश्च यत् श्रद्धया स्वल्पमुपैति दानम
अनन्तपारं समुपैति राजन् यद्दीयते तन्न लभेद् द्विजेभ्य:
इसका मतलब ये है कि दयावान और करुणा से युक्त व्यक्ति दुखी ब्राह्मणों को श्रद्धा से जो कुछ भी दान देता है, उसे भगवान की कृपा से उससे ज्यादा प्राप्त होता है.
इसके आगे वह कहते हैं कि अपने बंधु बांधवों से वही व्यक्ति सुखी रह सकता है जो उनके साथ सज्जनता और विनम्रता से व्यवहार करता है. वह कहते हैं कि दूसरे लोगों पर दया और प्रेमपूर्ण व्यवहार करने वाला व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है. माता पिता और आचार्य के साथ सहनशीलत वाला व्यवहार करने वाला व्यक्ति सुखी रहता है.
ऐसे लोग नहीं रहते सुखी
चाणक्य कहते हैं कि जिसने कभी दान नहीं दिया, वेद नहीं सुने, सज्जन लोगों की संगति नहीं की, माता पिता की सेवा नहीं की वह कभी सुखी नहीं रह सकता है.