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श्राद्ध कर्मकांड से तृप्त होते हैं पितृगण

सनातन धर्म में वेदों की महत्ता बताई गई है। वेदों में कर्मकाण्ड, उपासना काण्ड एवं ज्ञान काण्ड इन तीनों का ही उल्लेख मिलता है। इन तीनों में प्रमुख स्थान कर्मकाण्ड को ही प्रदान किया गया है। इसी कर्मकाण्ड के अन्तर्गत पितृ यज्ञ का उल्लेख भी मिलता है। पितृ यज्ञ को श्राद्ध भी कहते हैं। पितृ यज्ञ का तात्पर्य है कुटुम्ब के प्राणियों की मृत्यु के पश्चात उनकी संतुष्टि तथा तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले पिण्डोदकादि कर्म। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धापूर्वक पितृों के उद्देश्य से विधिपूर्वक कर्म।

श्राद्ध की आवश्यकता और काल श्राद्ध मृत व्यक्ति की आत्मा को प्रेत योनी से निकाल पितृ योनी में ले जाने की प्रक्रिया है। इससे पितृ तृप्त होते हैं। भाद्र्नपद शुक्ल पूर्णिमा से पितरों का दिन प्रारम्भ होता है जो अमावस्या तक रहता है। शुक्ल पक्ष पितरों की रात्रि कही गई है इसलिए मनुस्मृति में भी कहा गया है मनुष्यों के एक मास के बराबर पितृों का एक अहोरात्र (दिन-रात) होता है। मास में दो पक्ष होते हैं। कृष्ण पक्ष पितृों के कर्म का दिन और शुक्ल पक्ष पितृों के सोने के लिए रात होती है।

यही कारण है कि अश्विन मास के कृष्ण पक्ष-पितृ पक्ष में पितृ श्राद्ध करने का विधान है। ऐसा करने से पितरों को प्रतिदिन भोजन मिल जाता है इसलिए शास्त्रों में पितृ पक्ष में श्राद्ध करने की विशेष महिमा बताई गई है। आदित्य पुराण में लिखा है कि जो मनुष्य दुर्बुद्धिवश पितृलोक या पितृों को न मानकर श्राद्ध नहीं करता उसके पितृ उसका ही रक्तपान करते हैं। जो प्राणी विधिपूर्वक एकाग्रचित्त होकर श्राद्ध करता है वह सभी पापों से रहित होकर योगियों के पद को प्राप्त होता है।

श्राद्ध की महिमा : भविष्य पुराण में बारह प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख किया गया है। नित्य, नैमित्तक, काम्य, वृद्धि, सपिण्डन, पार्वण, गोष्ठी, शुद्धचर्य, कर्मांग, दैविक, पात्रार्थ एवं पुष्टचर्थ यह बारह प्रकार के श्राद्ध भविष्यपुराण में बताए गए हैं।

आयु: प्रज्ञां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्षं सुखानि च। प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितृ: श्राद्धतर्पिता:।। मार्कण्डेय पुराण के वर्णनानुसार इस श्लोक का भाव है श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितृ श्राद्धकर्त्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, राज्य, सुख, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं। नारदखण्ड में भी श्राद्ध की महिमा में कहा गया है कि जो मनुष्य एक दिन भी श्राद्ध करता है उसके पितृ वर्षपर्यन्त के लिए संतुष्ट हो जाते हैं। श्राद्ध करने वाला मानव निरोग, स्वस्थ, चिरायु, योग्य, संततिवाला, धनोपार्जक एवं धनी होता है। उसे लक्ष्मी की प्राप्ति होने के साथ ही परलोक में भी संतोष प्राप्त होता है।

श्राद्ध में अर्पित पदार्थ और पितृ : कई नास्तिक लोग यह प्रश्न करते हैं कि श्राद्ध में अर्पित किए पदार्थ पितृों को कैसे पहुंच सकते हैं क्योंकि हर प्राणी के कर्म विभिन्न होते हैं और मरने के बाद गतियां भी अलगअलग होती हैं। कोई देवता बन जाता है, कोई पितृ, कोई प्रेत, कोई किसी योनि में। जो लोग देवलोक या पितृ लोक में पहुंचते हैं वे मंत्रों के द्वारा बुलाए जाने पर उन-उन लोकों से तत्काल श्राद्ध देश में आ जाते हैं। वे निमंत्रित ब्राह्मणों के शरीर में सतकर भोजन कर लेते हैं। सूक्ष्मग्राही होने के कारण सूक्ष्मकणों के आग्रहण से ही उनका भोजन हो जाता है तथा वे तृप्त हो जाते हैं।

कुछ पितृ अंतरिक्ष में वायवीय शरीर धारण कर रहते हैं। इन्हें श्राद्ध काल आ गया, ऐसा श्रवण कर ही तृप्ति हो जाती है। वे स्मरण से ही श्राद्ध देश में आकर श्राद्ध ग्रहण करते हैं। वायवीय शरीर होने के कारण हम उन्हें देख नहीं पाते। कुछेक परिस्थितियों में पितरों का श्राद्ध देश में आना सम्भव नहीं होता। सृष्टिकर्त्ता की व्यवस्था के चलते उनकी श्राद्ध सामग्री उनके अनुरूप होकर उनके पास पहुंच जाती है। गोत्र और नाम के उच्चारण के साथ जो देवता बन गए हैं उन्हें श्राद्ध का अन्न अमृत रूप में, जो गन्धर्व बन गए हैं उन्हें यह अन्न विभिन्न भोगों के रूप में, राक्षस बन जाने पर आमिष रूप में, नाग योनि में वायु रूप में, पशु योनि में है तो तृण के रूप में व मनुष्य बन जाने पर विभिन्न प्रकार के भोग्य रस में परिवर्तित होकर मिलता है।

कैसे करें दिवंगत का श्राद्ध : परिवार के जिस दिवंगत व्यक्ति का श्राद्ध करना हो उस व्यक्ति की मृत्यु तिथि ज्ञात होनी आवश्यक है। श्राद्ध प्राणी की मृत्यु तिथि पर ही किया जाता है। यदि यह तिथि ज्ञात न हो तो अमावस्या तिथि पर सभी अज्ञात परिजनों का श्राद्ध कर सकते हैं। अमावस्या श्राद्ध को सर्वपितृ श्राद्ध का नाम दिया गया है। श्राद्ध वाले दिन किसी विद्वान ब्राह्मण को घर बुलाकर मंत्रोच्चारण करवाते हुए तिलांजलि पितृों को अर्पित करनी चाहिए। यदि ब्राह्मण उपलब्ध न हो सके तो यह कर्म खुद भी कर लेना चाहिए। श्राद्ध वाले दिन संकल्प लेकर ब्राह्मण को भोजन करवाएं।

अगर भोजन पका कर न दे सकें तो एक थाली में आटा, चावल, दाल, घी, नमक, गुड़ एवं द्रव्य पदार्थ दक्षिणा रख कर सदाचारी ब्राह्मण को भेंट करें तथा उसका चरण-स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें। ब्राह्मण में अपने पितृ की भावना करें। दिवंगत आत्मा की शांति अथवा उसकी स्मृति में निम्नलिखित दान श्रेष्ठ कहे गए हैं। स्वर्ण, भूमि, गाय, वस्त्र, पंचरत्न, धान्य, धार्मिक पुस्तकें एवं प्रचलित मुद्रा, लेकिन यह केवल सदाचारी ब्राह्मण एवं योग्य पात्र को ही देना चाहिए। अयोग्य पात्र को देने से दोष ही लगता है। पदम पुराण के अनुसार यदि श्राद्धकर्त्ता की आर्थिक स्थिति बिल्कुल ठीक न हो तो उसे चाहिए कि वह घास काटकर गाय को खिला दे।

यदि ऐसा सम्भव न हो सके तो शास्त्रों में वर्णित है कि श्राद्धकर्त्ता एकांत स्थल पर चला जाए और दोनों भुजाओं को ऊपर उठा कर प्रार्थना करेहे मेरे पितृगण, मेरे पास श्रद्धा के उपयुक्त न तो धन है न धान्य आदि और कुछ। मेरे पास आपके लिए श्रद्धा और भक्ति है। इसी के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूं। पितृ पक्ष में परिवार के दिवंगत प्राणियों के निमित्त दत्तात्रेय भगवान की उपासना कर उनकी मुक्ति की प्रार्थना की जाती है। भगवान दत्तात्रेय को विष्णु, ब्रह्मा व महेश का संयुक्त रूप माना जाता है। आदि गुरु दत्तात्रेय प्राणी की सद्गति करते हैं इसलिए श्राद्ध के समय ‘श्री गुरुदेव दत्त’ मंत्र का जाप करना चाहिए।

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