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यहां अश्वत्थामा आज भी करते हैं मां काली की आराधना

इटावा: इटावा में चंबल के बीहड़ों में स्थित महाभारत कालीन सभ्यता से जुडे मां काली के मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां महाभारत का अमर पात्र अश्वत्थामा अदृश्य रूप में सबसे पहले पूजा करते हैं। कालीवाहन नामक यह मंदिर इटावा मुख्यालय से मात्र 5 कि.मी. दूर यमुना नदी के किनारे स्थित है।

नवरात्र पर इस मंदिर में दूरदराज से बड़ी तादाद में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के इरादे से यहां आकर मां काली के चरणों में अपना शीश नवाते हैं। कालीवाहन मंदिर के करीब 40 साल से अधिक समय तक मुख्य साधक रहे राधेश्याम द्विवेदी के बेटे विवेक द्विवेदी बताते है कि दूरदराज के क्षेत्रों में ख्यातिप्राप्त इस अति प्राचीन मंदिर का एक अलग महत्व है। नवरात्र के दिनों में तो इस मंदिर की महत्ता अपने आप में खास बन पड़ती है।

उन्होने बताया कि उनके पिता करीब 40 साल तक इस मंदिर के मुख्य साधक के रूप रहे है लेकिन आज तक इस बात का पता नहीं लग सका है कि रात के अंधेरे में जब मंदिर को धोकर साफ कर दिया जाता है, इसके बावजूद तड़के जब गर्भगृह खोला जाता है उस समय मंदिर के भीतर ताजे फूल मिलते है जो इस बात को साबित करता है कोई अदृश्य रूप में आकर पूजा करता है। अदृश्य रूप में पूजा करने वाले के बारे में ऐसा कहा जाता है कि महाभारत के अमर पात्र अश्वत्थामा सबसे पहले अदृश्य रूप में मंदिर में पूजा करने के लिए आते हैं।

मंदिर की महत्ता के बारे में चौधरी चरण सिंह पोस्ट डिग्री कालेज के प्राचार्य और नामी इतिहासकार डॉ. शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि इतिहास में कोई भी घटना तब तक प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती जब तक कि उसके पक्ष में पुरातात्विक, साहित्यिक, ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध न हो जाएं लेकिन जनश्रुतियों के अनुसार कतिपय बातें समाज में प्रचलित हो जातीं हैं।

महाभारत ऐतिहासिक ग्रंथ है, उसके पात्र अश्वत्थामा का इटावा में काली मंदिर में आकर पूजा करने का कोई प्रत्यक्ष ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है लेकिन जनश्रुतियों के आधार पर ऐसा कहा जा रहा है कि महाभारत का अमर पात्र अश्वत्थामा अदृश्य रूप में काली वाहन मंदिर में सबसे पहले श्रद्धालु बनाकर के पूजा करने के लिए आता है।

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