Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the rocket domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114
धार्मिक मान्यताओं का पर्व है होली, जानिए इसके पीछे का इतिहास - Dainik Savera Times | Hindi News Portal
Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

धार्मिक मान्यताओं का पर्व है होली, जानिए इसके पीछे का इतिहास

प्रकृति सदा एक रंग में अपनी खूबसूरती को कैद कर नहीं रखती। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। विभिन्न मौसम उसे अनेक रंगों में रंग देते हैं। भारतवर्ष में कभी लोहड़ी आती है तो कभी रोशनी का पर्व दीपावली तो कभी बसंती रंग की बसंत पंचमी आती है। रंगों, उल्लास, उमंग, संगीत और नृत्य के त्यौहार होली की अपनी ही विशेषता है। इस पर्व के आगमन का नाम सुनते ही मन गुलाब की भांति खिल उठता है। होली पर्व को मनाने की शुरुआत कब हुई, इसके बारे में कई धार्मिक मान्यताएं हैं।

एक प्राचीन दंतकथा के अनुसार नास्तिक राजा हिरण्यकश्यपु जो अपनी पूजा करवाया करता था जब उसके पुत्र प्रह्लाद ने उसके आदेश को मानने से इंकार कर दिया तो राजा ने अपने पुत्र को जलाने का आदेश दे दिया। राजा ने अपनी बहन होलिका को जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। प्रभु कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जल गई। तभी से यह होलिकोत्सव मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने संबंधी एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि सती के अग्नि में समाधि लेने के उपरांत भगवान शंकर ने गहरी समाधि लगा ली।

भगवान शंकर की समाधि तोड़ने के लिए देवराज इन्द्र ने कामदेव को भेजा। उसने भगवान की समाधि तो भंग कर दी लेकिन उनके क्रोध का सामना कामदेव न कर सके और उनके कोप को न सहते हुए जलकर भस्म हो गए। इस पर्व को मनाने को लेकर एक द्वापरकालीन मान्यता भी है। जब अत्याचारी राजा कंस के आदेश से राक्षसी पूतना ने बालक श्रीकृष्ण को मारना चाहा तो खुद मृत्यु लोक पहुंच गई। मान्यताएं चाहे कुछ भी हों पर हैं शिक्षाप्रद। ये हमें बताती हैं कि अधर्म पर धर्म की, अन्याय पर न्याय की और झूठ पर सच की विजय अवश्य होती है।

फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस पर्व को जाड़े के अंत और बसंत के प्रारंभ के रूप में भी देखा जाता है। होली पर्व को कृषि से जोड़कर भी देखा जाता है। होलिका का अर्थ भुना हुआ अन्न भी है। भुने हुए अन्न को मनाए जाने वाले त्यौहार को होलिकोत्सव भी कहते हैं। इस पर्व को मनाने संबंधी तैयारियां कई दिन पहले ही प्रारंभ हो जाती हैं। फाल्गुन की पूर्णिमा को लकड़ियों के ढेर को आग लगा दी जाती है और यह कल्पना की जाती है कि होलिका जल रही है। उसके बाद रंगों से होली खेली जाती है और खुशियां मनाई जाती हैं। होली के दूसरे दिन को दुलेंडी कहा जाता है।

उस दिन लोग एक-दूसरे के गले मिलकर पुराने वैर-विरोध को भुला देते हैं। होली का रिश्ता भगवान श्रीकृष्ण से भी है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण गौ और गोपियों से मिलकर होली खेला करते थे। इसी कारण ब्रज की होली विश्व-प्रसिद्ध है। दशम पिता गुरु गोबिंद सिंह जी ने होली को ‘होला-मोहल्ला’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया। होली के अगले दिन गुरु साहिब ने श्री आनंदपुर साहिब में ‘होला-मोहल्ला’ मनाने का निमंत्रण दिया तथा कथा-कीर्तन द्वारा प्रभु-भक्ति का संदेश जनसाधारण को दिया गया। इसके उपरांत कृत्रिम लड़ाई का दृश्य जनसाधारण के सामने रखा गया।

खेल, शस्त्र विद्या, गतका आदि को भी प्रोत्साहित किया गया। इस सबका उद्देश्य सिंहों को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक पक्ष से सुदृढ़ करना था। लंगर प्रथा एवं कड़ाह प्रसाद की देगें होला-मोहल्ला के पर्व के हर्ष और पावनता को बढ़ाने वाली होती हैं। इस पर्व को प्रारंभ करने का गुरु साहिब का उद्देश्य यह था कि पवित्र गुलाल के माध्यम से जनसाधारण को कच्चे रंग अर्थात अमानवीय कर्मों से हटाकर पक्के रंग भाव प्रभु भक्ति एवं शुभ कार्यों से जोड़ा जाए।

लोगों में बहादुरी, दृढ़ता, अटल विश्वास की जागृति पैदा की जाए परंतु वर्तमान में महापुरुषों एवं विभिन्न पौराणिक कथाओं द्वारा शिक्षादायक माने जाने वाले इस पर्व का महत्व युवा वर्ग भूल रहा है। युवा वर्ग गंदा पानी, कीचड़ फैंककर, शोर मचाकर, झगड़े-फसाद कर, पक्के रंग जो शरीर विशेषकर आंखों के लिए हानिकारक हैं आदि रंगों से यह पर्व मनाकर पर्व की गरिमा भंग कर रहा है। युवा वर्ग को इस पर्व की गरिमा को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए एवं शिष्टाचार में रहकर यह पर्व मनाना चाहिए।

Exit mobile version