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हुक्मनामा श्री हरमंदिर साहिब जी 05 जनवरी 2025

Hukamnama

Hukamnama

Hukamnama 05 January 2025 : बिलावलु ॥ जनम मरन का भ्रमु गइआ गोबिद लिव लागी ॥ जीवत सुंनि समानिआ गुर साखी जागी ॥१॥ रहाउ ॥ कासी ते धुनि ऊपजै धुनि कासी जाई ॥ कासी फूटी पंडिता धुनि कहां समाई ॥१॥ त्रिकुटी संधि मै पेखिआ घट हू घट जागी ॥ ऐसी बुधि समाचरी घट माहि तिआगी ॥२॥ आपु आप ते जानिआ तेज तेजु समाना ॥ कहु कबीर अब जानिआ गोबिद मनु माना ॥३॥११॥

अर्थ :-(मेरे अंदर) सतिगुरु की शिक्षा के साथ ऐसी बुध जाग गई है कि मेरी जन्म-मरन की भटकना ख़त्म हो गई है, प्रभू-चरणो में मेरी सुरत जुड़ गई है, और मैं जगत में विचरता हुआ ही उस हालत में टिका रहता हूँ जहाँ माया के फुरने नहीं उठते ।1 ।रहाउ । हे पंडित ! जैसे कैंह के बर्तन को खटकने से उस में से अवाज निकलती है, अगर (खटकाना) छोड़ दें तो वह अवाज कैंह में ही खत्म हो जाती है, उसी प्रकार इस शारीरीक मोह का हाल है । (जब से बुध जागी है) मेरा शरीर से मोह मिट गया है (मेरा यह मायिक पदार्थों के साथ ठटकण वाला बर्तन टूट गया है), अब पता ही नहीं कि वह तृष्णा की अवाज कहाँ जा गुंम हुई है ।1 । (सतिगुरु की शिक्षा के साथ बुध जागने से ) मैंने अंदरली खिझ दूर कर ली है, अब मुझे हरेक घट में भगवान की जोत जगती दिख रही है; मेरे अंदर ऐसी मत पैदा हो गई है कि मैं अंदर से विरकत हो गया हूँ ।2 । अब अंदर से ही मुझे आपे की सूझ हो गई है, मेरी जोत रबी-जोत में रल गई है । हे कबीर ! बोल-अब मैं गोबिंद के साथ जान-पहचान पाने के लिए है, मेरा मन गोबिंद के साथ गिझ गया है ।3 ।11 ।

 

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