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हुक्मनामा श्री हरमंदिर साहिब जी 22 दिसंबर 2024

Hukamnama 22 December 2024 : जैतसरी महला ९ ॥  हरि जू राखि लेहु पति मेरी ॥ जम को त्रास भइओ उर अंतरि सरनि गही किरपा निधि तेरी ॥१॥ रहाउ ॥ महा पतित मुगध लोभी फुनि करत पाप अब हारा ॥ भै मरबे को बिसरत नाहिन तिह चिंता तनु जारा ॥१॥ कीए उपाव मुकति के कारनि दह दिसि कउ उठि धाइआ ॥ घट ही भीतरि बसै निरंजनु ता को मरमु न पाइआ ॥२॥

अर्थ : हे प्रभु जी! मेरी लाज रख लो । मेरे हृदय में मौत का डर बस रहा है, (इस से बचने के लिए) हे कृपा के खजाने प्रभु! मैने तेरा सहारा लिया है॥१॥ रहाउ॥ हे प्रभु! मैं बड़ा विकारी हूँ, मुर्ख हूँ, लालची भी हूँ, पाप करता करता अब मैं थक गया हूँ। मुझे मरने का डर (किसी समय) भूलता नहीं, इस (मरने) की चिंता ने मेरा सरीर जला दिया है॥१॥ (मौत के इस डर से) खलासी हासिल करने के लिए मैने अनेकों यतन किये हैं, दस तरफ उठ उठ कर भागा हूँ। (माया के मोह से) निर्लेप परमात्मा हृदय में ही बस्ता है, उस का भेद मैं नहीं समझ सका॥२॥ हे नानक! (कह: परमात्मा की शरण पड़े बिना) कोई गुण नहीं कोई जप-तप नहीं (जो मौत के सहम से बचा ले, फिर) अब कौन सा काम किया जाए? हे प्रभु! (और तरीकों से) हार के मैं तेरी शरण आ पड़ा हूँ। तू मुझे मौत के डर से खलासी का दान दे।3।

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