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हुक्मनामा श्री हरमंदिर साहिब जी 21 फरवरी 2025

Hukamnama

Hukamnama

Hukamnama : गूजरी महला १ ॥ नाभि कमल ते ब्रहमा उपजे बेद पड़हि मुखि कंठि सवारि ॥ ता को अंतु न जाई लखणा आवत जात रहै गुबारि ॥१॥ प्रीतम किउ बिसरहि मेरे प्राण अधार ॥ जा की भगति करहि जन पूरे मुनि जन सेवहि गुर वीचारि ॥१॥ रहाउ ॥ रवि ससि दीपक जा के त्रिभवणि एका जोति मुरारि ॥ गुरमुखि होइ सु अहिनिसि निरमलु मनमुखि रैणि अंधारि ॥२॥ सिध समाधि करहि नित झगरा दुहु लोचन किआ हेरै ॥ अंतरि जोति सबदु धुनि जागै सतिगुरु झगरु निबेरै ॥३॥ सुरि नर नाथ बेअंत अजोनी साचै महलि अपारा ॥ नानक सहजि मिले जगजीवन नदरि करहु निसतारा ॥४॥२॥ {पन्ना 489}

Hukamnama अर्थ : हे मेरी जिंदगी के आसरे प्रीतम! मुझे ना भूल तू वह है जिसकी भक्ति पूरन पुरख सदा करते रहते हैं, जिसे ऋषि-मुनि गुरू की बताई हुई समझ के आसरे सदा सिमरते हैं।1। रहाउ। (पुराणों में कथा आती है कि जिस ब्रहमा के रचे हुए) वेद (पण्डित लोग) मुंह से गले से मीठी सुर में नित्य पढ़ते हैं, वह ब्रहमा विष्णु की नाभि में से उगे हुए कमल की नालि से पैदा हुआ (और अपने जन्म दाते की कुदरति का अंत ढूँढने के लिए उस नालि में चल पड़ा, कई युग उस नालि के) अंधेरे में ही आता जाता रहा, पर उसका अंत ना ढूँढ सका।1। वह प्रभू इतना बड़ा है कि सूरज और चंद्रमा उसके त्रिभवणीय जगत में (मानो छोटे से) दीपक (ही) हैं, सारे जगत में उसीकी ज्योति व्यापक है। जो मनुष्य गुरू के बताए राह पर चल के उस को दिन-रात मिलता है वह पवित्र जीवन वाला हो जाता है। जो मनुष्य अपने मन के पीछे चलता है उसकी जिंदगी की रात (अज्ञानता के) अंधेरे में बीतती है।2। बड़े-बड़े जोगी (अपने ही उद्यम की टेक रख के) समाधियां लगाते हैं और मन को जीतने के यतन करते हैं (पर जो मनुष्य अपने उद्यम की ही टेक रखे, उसे) वह अंदर बसती ज्योति इन आँखों से नहीं दिखती। (जो मनुष्य गुरू के सन्मुख होता है) उसका मन वाला झगड़ा गुरू समाप्त कर देता है, उसके अंदर गुरू का शबद-रूप मीठी लगन लग पड़ती है, उसके अंदर परमात्मा की ज्योति जग पड़ती है।3। हे नानक! (अरदास कर-) हे देवताओं और मनुष्यों के पति! हे बेअंत! हे योनि-रहित! और अॅटल महल में टिके रहने वाले अपार प्रभू! हे जगत के जीवन! (मेहर कर मुझे) अडोलता में निवास मिले। मेहर की निगाह करके मेरा बेड़ा पार कर।4।2।

 

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