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domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init
action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114धर्म : सोरठि महला ५ ॥ सूख मंगल कलिआण सहज धुनि प्रभ के चरण निहारिआ ॥ राखनहारै राखिओ बारिकु सतिगुरि तापु उतारिआ ॥१॥ उबरे सतिगुर की सरणाई ॥ जा की सेव न बिरथी जाई ॥ रहाउ ॥ घर महि सूख बाहरि फुनि सूखा प्रभ अपुने भए दइआला ॥ नानक बिघनु न लागै कोऊ मेरा प्रभु होआ किरपाला ॥२॥१२॥४०॥
अर्थ : ( हे भाई! गुरु की शरण आ कर जिस मनुष ने) परमात्मा के चरणों का दर्शन कर लिया, उस के अंदर सुख खुशी आनंद और आत्मक अडोलता की लहर चल पड़ी। ( जो भी मनुष गुरु की शरण आ पड़ा) गुरु ने उस का ताप (दुःख-कलेश) खत्म कर दिया, रक्षा करने का समर्थय रखने वाले गुरु ने उस बालक को (विघ्नों से) बचा लिया (उस को इस प्रकार बचाया जैसे पिता अपने पुत्र की रक्षा करता है) ॥१॥ हे भाई! उस गुरु की शरण जो मनुख आते हैं (आत्मिक जीवन के रास्तेमें आने वाली रुकावटों से ) बच जाते हैं जिस गुरु कि की हुई सेवा खाली नहीं जाती (उस की शरण प्राप्त कर।)॥रहाउ॥ (हे भाई! जो मनुख गुरु की शरण आते हैं उन के) हृदय में आत्मिक आनंद बना रहता है, उस ऊपर प्रभू सदा दयावान रहता है। बाहर (दुनिया से बरत-विहार करते) भी उस को आत्मिक सुख मिलता रहता है, उस ऊपर परभू सदा दयावान रहता है। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! उस मनुख की जिंदगी के रास्ते में कोई रुकावट नहीं आती, उस ऊपर परमात्मा किरपाल हुआ रहता है॥२॥१२॥४०॥