धर्म : सलोक ॥ मन इछा दान करणं सरबत्र आसा पूरनह ॥ खंडणं कलि कलेसह प्रभ सिमरि नानक नह दूरणह ॥१॥ हभि रंग माणहि जिसु संगि तै सिउ लाईऐ नेहु ॥ सो सहु बिंद न विसरउ नानक जिनि सुंदरु रचिआ देहु ॥२॥ पउड़ी ॥ जीउ प्रान तनु धनु दीआ दीने रस भोग ॥ ग्रिह मंदर रथ असु दीए रचि भले संजोग ॥ सुत बनिता साजन सेवक दीए प्रभ देवन जोग ॥ हरि सिमरत तनु मनु हरिआ लहि जाहि विजोग ॥ साधसंगि हरि गुण रमहु बिनसे सभि रोग ॥३॥
अर्थ: गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! जो प्रभु हमें मन भवन सुख देता है जो सब जगह (सब जीवो की उम्मीदें पूरी करता है, जो हमारे झगड़े और कलेश नास करने वाला है उस को याद कर वेह तेरे से दूर नहीं है।1। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! जिस प्रभु की बरकत से तुम सभी आनंद करते हो, उस से प्रीत जोड़। जिस प्रभु ने तुम्हारा सुंदर सरीर बनाया है, भगवन कर के उसे कभी भी न भूल।२। (प्रभु ने तुझे) जीवन प्राण शरीर और धन दिया और विभिन्न प्रकार के स्वाद वाले पदार्थ भोगने को दिए । तेरे अच्छे भाग्य बनाकर, तुझे उसने सुंदर घर, मकान, औरत और घोड़े दिए। सब कुछ देने में समर्थ प्रभु ने तुझे पुत्र, पत्नी, मित्र और नौकर दिए। उस प्रभु को स्मरण करने से मन तन खिला रहता है। सारे दुख सारे दुख मिट जाते हैं। हे भाई सत्संगत में उस हरि के गुण याद करा करो सारे रोग उसको स्मरण करने से नाक हो जाते हैं।