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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 14 नवंबर 2024

धर्म : सलोकु मः ३ ॥पड़णा गुड़णा संसार की कार है अंदरि त्रिसना विकारु ॥ हउमै विचि सभि पड़ि थके दूजै भाए खुआरु ॥ सो पड़िआ सो पंडितु बीना गुर सबदि करे वीचारु ॥ अंदरु खोजै ततु लहै पाए मोख दुआरु ॥ गुण निधानु हरि पाइआ सहजि करे वीचारु ॥ धंनु वापारी नानका जिसु गुरमुखि नामु अधारु ॥१॥ मः ३ ॥ विणु मनु मारे कोए न सिझई वेखहु को लिव लाए ॥ भेखधारी तीरथी भवि थके ना एहु मनु मारिआ जाए ॥ गुरमुखि एहु मनु जीवतु मरै सचि रहै लिव लाए ॥ नानक इसु मन की मलु इउ उतरै हउमै सबदि जलाए ॥२॥ पउड़ी ॥ हरि हरि संत मिलहु मेरे भाई हरि नामु द्रिड़ावहु इक किनका ॥ हरि हरि सीगारु बनावहु हरि जन हरि कापड़ु पहिरहु खिम का ॥ ऐसा सीगारु मेरे प्रभ भावै हरि लागै पिआरा प्रिम का ॥ हरि हरि नामु बोलहु दिनु राती सभि किलबिख काटै इक पलका ॥ हरि हरि दइआलु होवै जिसु उपरि सो गुरमुखि हरि जपि जिणका ॥२१॥

अर्थ-पढ़ना और विचारना संसार के काम (ही हो गए) है (भाव, और व्यावहारों की तरह ये भी एक व्यवहार ही बन गया है, पर) हृदय में तृष्णा और विकार (टिके ही रहते) हैं; अहंकार में सारे (पंडित) पढ़ पढ़ के थक गए है, माया के मोह में दुखी ही होते हैं।वह मनुष्य पढ़ा हुआ और समझदार पंण्डित है (भाव, उस मनुष्य को पण्डित समझो), जो अपने मन को खोजता है (अंदर से) हरी को पा लेता है और (तृष्णा से) बचने का रास्ता ढूँढ लेता है, जो गुणों के खजाने हरी को प्राप्त करता है और आत्मिक अडोलता में टिक के परमात्मा के गुणों में सुरति जोड़े रखता है।

हे नानक! इस तरह सतिगुरू के सन्मुख हुए जिस मनुष्य का आसरा ‘नाम’ है, वह नाम का व्यापारी मुबारिक है।1।कोई भी मनुष्य बिरती जोड़ के देख ले, मन को काबू किए बिना कोई सफल नहीं हुआ (भाव, किसी की मेहनत सफल नहीं हुई); भेष करने वाले (साधू भी) तीर्थों की यात्राएं करते थक गए हैं, (इस तरह भी) ये मन मारा नहीं जाता।सतिगुरू जी के सन्मुख होने से मनुष्य सच्चे हरी में बिरती जोड़े रखता है (इस लिए) उसका मन जीवित ही मरा हुआ है (भाव माया के व्यवहार करते हुए भी माया से उदास है)। हे नानक! इस मन की मैल इस तरह उतरती है कि (मन का) अहंकार (सतिगुरू के) शबद में जलाया जाए।2।

हे मेरे भाई संत जनो! एक किनका मात्र (मुझे भी) हरी का नाम जपाओ। हे हरी जनो! हरी के नाम का श्रृंगार बनाओ, और क्षमा की पोशक पहनो। ऐसा श्रृंगार प्यारे हरी को अच्छा लगता है, हरी के प्रेम का श्रृंगार प्यारा लगता है। दिन-रात हरी का नाम सिमरो, एक पलक में सारे पाप कट जाएंगे। जिस गुरमुख पर हरी दयाल होता है वह हरी का सिमरन करके (संसार से) जीत के जाता है।21।

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