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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 17 जून 2024

जो जनु भाउ भगति कछु जानै ता कउ अचरजु काहो ॥ जिउ जलु जल महि पैसि न निकसै तिउ ढुरि मिलिओ जुलाहो ॥१॥ हरि के लोगा मै तउ मति का भोरा ॥ जउ तनु कासी तजहि कबीरा रमईऐ कहा निहोरा ॥१॥ रहाउ ॥

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धर्म :- जो जनु भाउ भगति कछु जानै ता कउ अचरजु काहो ॥ जिउ जलु जल महि पैसि न निकसै तिउ ढुरि मिलिओ जुलाहो ॥१॥ हरि के लोगा मै तउ मति का भोरा ॥ जउ तनु कासी तजहि कबीरा रमईऐ कहा निहोरा ॥१॥ रहाउ ॥ कहतु कबीरु सुनहु रे लोई भरमि न भूलहु कोई ॥ किआ कासी किआ ऊखरु मगहरु रामु रिदै जउ होई ॥२॥३॥

अर्थ :- जैसे पानी पानी में मिल के (फिर) अलग नहीं हो सकता, उसी प्रकार (कबीर) जुलाह (भी) आपा-भाव मिटा के परमात्मा में मिल गया है। इस में कोई अनोखी बात नहीं है,जो भी मनुख भगवान-प्रेम और भगवान-भक्ति के साथ साँझ बनाता है (उस का भगवान के साथ एक-रूप हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है।1। हे संत जनो ! (लोकों के विचार में) मैं मति का कमला ही सही (भावार्थ, लोक मुझे काहे मूर्ख कहें कि मैं काँशी छोड़ के मगहर आ गया हूँ)। (पर,) हे कबीर ! (कबीर जी स्वयं को के रहे हैं) अगर तूं काँशी में (रहता हुआ) शरीर छोडें (और मुक्ति मिल जाए) तो परमात्मा का इस में क्या उपकार समझा जाएगा ? क्योंकि काँशी में तो वैसे ही इन लोकों के विचार अनुसार मरन लगने से मुक्ति मिल जाती है, तो फिर सुमिरन का क्या लाभ ?।1।रहाउ। (पर) कबीर जी कहते है-हे लोगो ! सुनो, कोई मनुख किसी भ्रम में ना पड़ जाए (कि काँशी में मुक्ति मिलती है, और मगहर में नहीं मिलती), अगर परमात्मा (का नाम) हृदय में हो, तो काँशी क्या और कलराठा मगहर क्या (दोनो जगह भगवान में लीन हो सकते है)।2।3।

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